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इटावा सफारी पार्क मे उगे बबूल की छाल से चलता था कानपुर का चमडा उधोग

इटावा सफारी पार्क मे उगे बबूल की छाल से चलता था कानपुर का चमडा उधोग

इटावा 23 नंबवर (वार्ता) कल रविवार को पर्यटको के लिए खुलने वाले इटावा सफारी पार्क की चर्चा आम हो चली है लेकिन यह बात बहुत ही कम लोगो को पता है कि आजादी से पहले सफारी की जमीन पर बबूल का बडा जंगल हुआ करता था जिसकी छाल से कानपुर के चमडा उधोग को जीवनदान मिलता था ।

इटावा सफारी पार्क के निदेशक वी.के.सिंह बताते है कि इटावा सफारी पार्क की जमीन के के बारे मे वन विभाग के पुराने अफसरो की ओर से जो जानकारियाॅ साझा की जा रही है वो इसके गौरवपूर्णता की ओर इशारा करती हैं। गिर के बाद अब उत्तर प्रदेश के इटावा में बब्बर शेरो के दहाडने का केंद्र बनाने वाले स्थल के इतिहास की बात करे तो यह बेहद ही महत्वपूर्ण रहा है ।

इस वन खण्ड में मुख्यतया बीहड तथा थोडी समतल बंजर भूमि है । ऐसा आभास होता है कि नदी के किनारे की भूमि की संरचना कटान के कारण बीहड बनी है। इन बीहडों का विशाल क्षेत्र अन्य किसी भी उपयोग के लिए अनुपयुक्त था।

इटावा के तत्कालीन जिलाधीश जे.एफ. फिशर के सन 1884 में अपने प्रारंभिक प्रयासों से इटावा शहर के पश्चिम की दिशा में बीहड जमीन थी, को अपनी इच्छानुसार 1146.07 हेक्टेयर जमीन जिलाधीश को सौंप देने के लिए राजी किया ताकि भूमि को क्षरण से बचाया जा सके तथा ईंधन व चारे के आरक्षित वन बनाए जा सके।

जमीदारों को ही इस कार्य के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराना था तथा इससे जो भी लाभ होता उसको दिए गए धन तथा अर्जित की हुई भूमि के अनुसार विभाजित करके चुकाना था। कार्य उसी वर्ष प्रारम्भ हो गए, क्षेत्र चरान के लिए बंद कर दिया गया और उसकी साधारण हल से जुताई कर इसमें बबूल, शीशम तथा नीम के बीजों को बोया गया।

बीहड में जगह-जगह पर बंधे बनाए गए ताकि जल व नमी का संरक्षण किया जा सके तथा जल स्तर ऊपर आ सके। बबूल की बढत इतनी उत्साहवर्धक थी कि कानपुर के कूपर एलैन कम्पनी ने सन 1902 में पूरा जंगल बबूल की छाल निकालने हेतु 2500 रुपया प्रति हेक्टेयर पर 50 वर्ष के पट्टे पर लेने को आकर्षित हुई।

कूपर एलैन कम्पनी ने सन 1914 तक फिशर वन का व्यवहारिक रूप से विस्तार कर लिया था जो कि उन्होंने 1902 में बबूल की छाल के लिए पट्टे पर लिया था। वन विभाग की निगाहें इस क्षेत्र पर पहले से थी, जिसमें कुछ सफलता दृष्टिगोचर हुई थी। अन्य क्षेत्रों में किए गए प्रथम वर्ष के वृक्षारोपण के उत्साहजनक परिणामों से वन विभाग अपने अधीन क्षेत्रों का विस्तार करने को इच्छुक था ।

कम्पनी ने रुपया 2500.00 पट्टे की कीमत तथा रुपया 2,382.00 जमीदारों के वार्षिक किराए सहित इस क्षेत्र के पट्टे को वन विभाग को स्थानान्तरित कर दिया। इस प्रकार फिशर वन 1914 से ही वन विभाग के नियंत्रण में है।

कानपुर के चमडे के कारखानों में बबूल की छाल की आपूर्ति बढाने तथा कारखानों के निकट बबूल के भंडार स्थापित करने के उद्देश्य से कालपी बीहडों में तथा आटा रेलवे स्टेशन के दक्षिण में स्थित पिपरायां में खेती योग्य जमीन जुताई कर बनाई गई।

वनीकरण कार्य बीहडों में बंधे बनाने के कार्य के साथ प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में परिणाम आशाजनक प्रतीत हुए परन्तु अंतिम सफलता दूर ही रही। आर्थिक दृष्टि से यह रोपन असफल रहा। सन् 1912 के प्रारम्भ में सरकार के सम्मुख नए जंगलों को लगाने की विशेष तथा उन जंगलों जिनकी आवश्यकता कृषि जनक मांगों को पूरा करने के लिए थी, के लिए एक निश्चित नीति निर्धारित करने की थी, परिणामस्वरूप उपलब्ध क्षेत्रों के साथ विभिन्न वर्गों की बंजर भूमि में वनीकरण के उपयोग के लिए आदेश दिए गए।

वनीकरण कार्य वर्ष 1913 के पश्चात् मुख्यतः दो प्रकार से किए गए, पहला नालों या अन्य उपयुक्त स्थलों पर बंधे बनाकर बढते हुए भू-क्षरण को रोकना, दूसरा उपयुक्त प्रजातियों का पौधा रोपण या बीजारोपण कर भूतल को एक वनस्पतिक आवरण प्रदान करना जो प्रारम्भ में भूमि को अपक्षरित होने से बचाए तथा भविष्य में एक ईंधन का भंडार भी बने।

बीजारोपण तथा पौधारोपण की विधि के अंतर्गत ऊँची समतल भूमि पर 20 से.मी. गहरा हल चलाया गया, 3-3 मीटर की दूरी पर 30 से.मी. ऊँची तथा 60 से.मी. चैथी आधार वाली समानान्तर कूट बनाई गई जिनके ऊपर और एक उथली बनाई गई, जिसमें शीशम, नीम, कंजी आदि के पौधों का रोपण किया गया तथा बबूल, नीम, पापडी के बीजों का कूटों में बुहान किया गया। जगह-जगह पर जल व मृदा संरक्षण हेतु नालों में बंधे बनाए गए तथा सही विधि बीहडों के तल के मैदानी भागों के लिए भी अपनाई गई।

डकैतों की शरणस्थली यमुना पटटी के किनारे करीब 2912 एकड जमीन में फैला हुआ यह फिशर वन पिछले चार दशक से डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था । 2003 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो उस समय इटावा समेत पूरी चंबल घाटी में कुख्यात डाकुओं का आतंक चरम पर था ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने डाकुओं की छाप से इटावा को मुक्त कराने के मकसद से पहले तो डाकुओं का सफाया कराया । उसके बाद इटावा को पर्यटन मानचित्र पर लाने की गरज से बीहड़ में लायन सफारी की स्थापना की रूपरेखा शुरू कराई।

सं विनोद

वार्ता

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