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लोकरुचि-छठ गीत बिहार तीन अंतिम पटना

छठ गीतों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि ये एक ही लय में गाए जाते हैं । 'छठ पूजा' के लोकगीतों की चर्चा होते ही सबसे पहले पद्मश्री से सम्मानित शारदा सिन्हा का नाम जेहन में आता है। ऐसे कई गीत हैं, जिन्हें शारदा सिन्हा ने अपनी अपनी मधुर आवाज देकर अमर कर दिया है। लोकगीतों के अलावा उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी गीत गाए हैं।
लोक गायकों की घटती संख्या पर श्रीमती सिन्हा कहना है कि यह सही है कि अब गिनती के लोक कलाकर हैं। हमारी संस्कृति की उजली धूप को चमकीला बनाए रखने के लिए ऐसी धुनें बनाने वालों, इन्हें श्रद्धा से गाने वालों और पूरे मन से सुनने वालों की जरूरत है। शारदाजी कहती है, छठ की परंपरा बहुत पुरानी है और इस पर्व को बहुत पवित्रता से मनाया जाता है। इस पर्व के गीतों में भी शुद्धता और सात्विकता की जरूरत है।
सूर्य की उपासना का पावन पर्व 'छठ' अपने धार्मिक, पारंपरिक और लोक महत्व के साथ ही लोकगीतों की वजह से भी जाना जाता है। घाटों पर 'छठी मैया की जय, जल्दी-जल्दी उगी हे सूरज देव..', 'कईली बरतिया तोहार हे छठी मैया..' 'दर्शन दीहीं हे आदित देव..', 'कौन दिन उगी छई हे दीनानाथ..' जैसे गीत सुनाई पड़ते हैं। मंगल गीतों की ध्वनि से वातावरण श्रद्धा और भक्ति से गुंजायमान हो उठता है। इन गीतों की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है।
प्रेम सूरज
वार्ता
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