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संस्कृत में अनूदित उपन्यास ‘कंकाल’ पाठ्यक्रम में हो शामिल

दरभंगा 07 जून (वार्ता) संस्कृत के विद्वानों ने आचार्य शोभाकांत जयदेव झा के हिंदी से अनूदित उपन्यास ‘कंकाल’ को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की आज मांग की।
संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ. सुरेश्वर झा ने साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विचार मंच ऋचालोक के तत्वावधान में आयोजित ‘कंकाल’ के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि अनूदित पुस्तक पाठ्यक्रम में शामिल किया ही जाना चाहिए ताकि छात्र संस्कृत भाषा सीख भी सकें और इसकी खूबियों से भी अवगत हो सकें। उन्होंने कहा कि आचार्य झा ने हिन्दी से अनुवाद कर उपन्यास को नया जीवन भी दिया है, क्योंकि संस्कृत ही वह भाषा है जो अपने मूल रूप में सैकड़ों साल बाद भी जीवित है।
डॉ. झा ने कहा कि विश्व की बहुत सारी भाषाएं जो संस्कृत की समकालीन थीं वे या तो मृत हो गई हैं या मृतप्राय हैं जबकि संस्कृत आज भी पूर्व रूप में जीवित है। उन्होंने अनुवाद को प्रामाणिक प्रकाश स्तंभ की संज्ञा दी और कहा कि हिंदी के मुहावरों का भी आचार्य ने बड़ी ही कुशलता से सहज अनुवाद किया है। उन्होंने कहा कि पुस्तक में संस्कृत शब्दों का अर्थ देकर सामान्य पाठक का उपकार किया है।
इस मौके पर समीक्षक एवं हिंदी साहित्य के विद्वान डॉ. प्रभाकर पाठक ने कहा कि आचार्य ने पुस्तक का भावानुवाद किया है। जैसे इस पुस्तक के माध्यम से आचार्य ने रचनाकार जयशंकर प्रसाद का साक्षात्कार किया है। उन्होंने अनुवाद के लिए मात्र भाव ग्रहण नहीं किया है बल्कि भाववर्द्धन भी किया है। धार्मिक, सामाजिक व सांस्कृतिक परंपरा में आ रहे ह्रास के ‘कंकाल’ को आचार्य ने अनुवाद के लिए इसलिए चुना ताकि इसका निदान हो सके। नारी की वेदना ने भी आचार्य का ध्यान आकृष्ट किया होगा।
सं सूरज
जारी (वार्ता)
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