राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Sep 11 2019 7:01PM ‘तर्पण’ एवं ‘श्राद्ध’ की सर्वमान्य विधि निकालने के लिए विद्वानों ने किया मंथनदरभंगा, 11 सितम्बर (वार्ता) हिंदू संस्कृति में मानव जाति के सबसे बड़े ‘पितृ ऋण’ से मुक्त होने के लिए निर्धारित विशेष समयकाल पितृपक्ष की शुरुआत में भले ही कुछ दिन शेष हों लेकिन देश के प्रतिष्ठित संस्कृत विश्वविद्यालयों में शुमार कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में पितरों की श्रद्धा में तर्पण एवं श्राद्ध अर्पित करने की सर्वमान्य सुगम विधि ढूंढने के लिए कई विद्वानों ने आज घंटों मंथन किया। कुलपति प्रो. सर्व नारायण झा के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के कई विद्वानों ने पितरों को श्राद्ध अर्पित करने के लिए किसी सर्वमान्य एवं सुगम विधि समेत कई सवालों का हल निकालने के लिए आज यहां मंथन किया। इस दौरान तर्पण से जुड़े कई ग्रन्थों के पन्ने पलटे गए और सभी का सुग्राह्य हल निकलता गया। पंडित परमेश्वर झा समेत अन्य विद्वानों द्वारा रचित पुस्तकों एवं मिथिला में प्रचलित व्यवहार और शास्त्र को विशेष रूप से ध्यान रखते हुए तर्पण श्राद्ध को करने पर बल दिया गया। विश्वविद्यालय के सूचना एवं जनसंपर्क अधिकारी निशिकांत ने यहां बताया कि सभी विद्वानों ने एकमत से तर्पण को नित्य कर्म बताया। विद्वानों ने कहा कि यदि नित्य कर्म में यह सम्भव नहीं हो तो पितृ पक्ष में सबसे पहले देवताओं को फिर, ऋषियों को और उसके बाद अपने पितरों एवं गुरुओं को तर्पण श्राद्ध के माध्यम से तृप्त कर सकते हैं। विशेष कार्यक्रम में जजमान की भूमिका में पूर्व कुलपति डॉ रामचन्द्र झा थे जबकि पुरोहित बने थे प्रो0 विद्येश्वर झा। कुलपति के अलावा डीन प्रो0 शिवाकांत झा, प्रोक्टर प्रो0 सुरेश्वर झा, डॉ बौआनंद झा, प्रो0 दयानाथ झा, प्रो0 दिलीप कुमार झा एवं प्रो0 विकाउ झा मुख्य रूप से इस कार्यक्रम में शामिल हुए। श्री निशिकांत ने बताया कि सभी विधि-विधानों एवं किये गए तर्पण श्राद्ध की लाइव वीडियो तैयार करायी गयी है जिसे संस्कृत विश्वविद्यालय के वेबसाईट पर अपलोड किया जाएगा। इस कार्यक्रम की खास ख़ासियत यह रही कि सारे क्रिया कर्म इस तरह किये गये कि उक्त वीडियो को देखकर हरकोई आसानी से अपने पितरों को तर्पण अर्पित कर सके। सं.सतीश सूरजवार्ता