राज्य » बिहार / झारखण्डPosted at: Feb 11 2021 4:41PM कला दिल की गहराई से जन्म लेती है : डॉ. अहमददरभंगा, 11 फरवरी (वार्ता) वरिष्ठ साहित्यकार एवं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. मुश्ताक अहमद ने विज्ञान की तुलना कला से करते हुए आज कहा कि विज्ञान मस्तिष्क से पैदा होता है जबकि कला दिल की गहराई से जन्म लेती है। श्री अहमद ने गुरूवार को विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग की ओर से ‘पारम्परिक लोक नाट्य के सौंदर्य’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए कहा कि सबसे बड़ा सौंदर्य अंधेरा है जब आंखें बन्द होने से सारी दृष्य दिल व दिमाग से देखें जाते हैं। जीवन का सौंदर्य गुनगुनाने में है। जब कोई संगीत बजता है तो उसके सौन्दर्य हमारे सामने तस्वीर की तरह आता है। उन्होंने कहा कि सर्वप्रथम हबीब तनवीर ने लोक परम्परा को नाट्य में बदलने का कार्य आरंभ किया जो हमारे यहां के लोक कलाकार भिखारी ठाकुर ने किया था। उन्होंने विज्ञान की तुलना कला से करते हुए कहा कि विज्ञान मस्तिष्क से पैदा होता है जबकि कला दिल की गहराई से पैदा होता है। बेंगलुरु से जुड़े विद्वान कथाकार, नाटककार एवं रंग समीक्षक हृषीकेश सुलभ ने अपने व्याख्यान में विस्तृत रूप से विषय को स्थापित करते हुए कहा कि नाट्य के सौन्दर्य को देखने परखने के लिए दृष्टि होनी चाहिए। हमारा पारम्परिक नाट्य बहुत विशाल है,यह विविधता सम्पूर्णता को प्रमाणित करती है। उन्होंने सूत्रधार, विदूषक, अभिनेता, नाटक का संगीत, शैलियां आदि का विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया। विदूषक में कार्यान्तरण की अद्भुत शक्ति है, इसका आधुनिक रंगमंच में खूब प्रयोग हुआ है जो लोक से ही लिया गया है। श्री सुलभ ने कहा कि अभिनेता की नैसर्गिक प्रतिभा को अवसर देना पारम्परिक नाटकों में महत्वपूर्ण है जिसका आधुनिक रंगमंच में प्रयोग करना आवश्यक है। नाटक की शैलियों के सौन्दर्य की बात करें तो सौन्दर्य के असंख्य उदाहरण हैं। संगीत नाटक का महत्वपूर्ण तत्व है। उन्होंने विशेष रूप से कहा कि आज रंगकर्मी बौद्धिक विमर्श से भाग रहे हैं, इस ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहिए। सं.सतीशजारी वार्ता