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जैव विविधता के लिए वनस्पतियों का संरक्षण जरूरी : डॉ. चौधरी

दरभंगा, 18 अगस्त (वार्ता) हैदराबाद के श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स इंडिया लिमिटेड के पूर्व रिसर्च विभागाध्यक्ष डॉ. सुनील चौधरी ने वनस्पतियों का स्वर्ग कहे जाने वाले भारत में तेजी से विलुप्त हो रही वनस्पतियों पर चिंता जाहिर करते हुए गुरुवार को कहा कि जैव विविधता बनाए रखने के लिए इनका संरक्षण किया जाना जरूरी है।
डॉ. चौधरी ने आज यहां स्वयंसेवी संगठन प्रभात दास फाउण्डेशन एवं नागेंद्र झा महिला महाविद्यालय के वनस्पति विभाग द्वारा आयोजित "विलुप्त होती भारतीय वनस्पतियाँ" विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए कहा कि आंकड़े बताते है कि भारत वनस्पति की विविधता के कारण दुनियाँ के 12 मेगा जैव विविधता हॉट स्पॉट वाले देश में शामिल है। फिर भी यहाँ की वनस्पतियाँ तेजी से विलुप्तप्राय हो रही हैं। पिछले पचास वर्षों में सबसे ज्यादा जंगली वनस्पतियों का विलोपन हुआ है। इसका मूल कारण कृषि, औद्योगिक और शहरी विकास के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई को माना गया है। श्री सुनील ने आगे कहा वनों के विनाश से अनेक भारतीय वनस्पति विलुप्‍त होने की स्थिति में है।लगभग 1336 ऐसी पादप प्रजातियाँ है जिन्हें असुरक्षित और संकट की स्थिति में माना गया हैं। जबकि लगभग 20 प्रजातियों को संभावित विलुप्‍त की श्रेणी में रखा गया है। उन्होंने कहा कि ये ऐसी वनस्पतियाँ जिन्हें पिछले 6 से 10 दशकों के बीच नहीं देखा गया है। अतंर्राष्ट्रीय संस्था बीएसआई ने भी संकट ग्रस्‍त पादपों की एक सूची रेड डाटा बुक नाम से प्रकाशित की है। इसमें विलुप्त प्राय सभी भारतीय वनस्पतियों को शामिल किया गया है और इनके संरक्षण की जरूरत बताई गई है।
प्रख्यात पर्यावरणविद सह वनस्पतिशास्त्री डॉ .विद्यानाथ झा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में कहा कि सभी सजीव का अपना महत्व है और वनस्पति तो पर्यावरण के अतिआवश्यक अंग है। जिस भी वनस्पति का लोप हो रहा है उसी के साथ उससे सभी पहलू भी गायब हो जाते हैं। वनस्पति वैज्ञानिकों ने भारत में पाए जाने वाले विभिन्न पौधों की कम से कम 20 प्रतिशत प्रजातियों को या तो खतरे में या लुप्तप्राय रूप में वर्गीकृत किया है।
डॉ. झा ने कहा कि वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि लगभग 3000 पौधों में औषधीय गुण हैं। इनका इस्तेमाल आयुर्वेद और पारंपरिक उपचार में किया जाता है। जबकि लगभग 28 प्रतिशत वनस्पतियाँ देश की मूल प्रजातियां हैं। अर्थात यदि इन पौधों को स्वयं हम भारतवासियों के प्रयासों से संरक्षित नहीं किया जाता है तो इनका अस्तित्व स्थायी तौर पर समाप्त हो जाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ ऋषि कुमार राय ने कहा कि हमारे पूर्वज पेड़-पौधों को मित्र के रूप में देखते थे और इसकी महत्ता से अवगत थे। यही कारण है कि वनस्पतियों के संरक्षण पर वेद-पुराणों में भी बल दिया गया है।
अतिथियों का स्वागत डॉ. ममता रानी ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सरोज कुमारी ने दिया। कार्यक्रम का संचालन वनस्पति विभागाध्यक्ष डॉ. भास्कर झा ने किया। इस मौके पर प्रो विमल कुमार, भगवान जी फाउण्डेशन के अनिल सिंह, राजकुमार आदि मौजूद थे।
सं.सतीश
वार्ता
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