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किसानों के हित में उठाए गए कदमों के नतीजे आए सामने

भोपाल, 04 मई (वार्ता) मध्यप्रदेश में किसानों के हित में उठाए गए अनेक कदमों के परिणाम सामने आने लगे हैं। राज्य सरकार ने किसानों की उपज की खरीदी की एक ऐसी प्रक्रिया निर्धारित की है, जिससे किसानों को वर्ष 2018 की अपेक्षा 2019 में बेहतर 'मॉडल भाव' मिले हैं।
मुख्यमंत्री कमलनाथ दिसंबर 2018 में सत्ता की कमान संभालने के बाद से ही कहते आ रहे हैं कि राज्य में अब कम उत्पादन समस्या नहीं रही। लेकिन अधिक कृषि उत्पादन का ठीक ढंग से प्रबंधन नहीं किया गया, तो यही बड़ी समस्या बन सकती है। उनके निर्देश पर कृषि और अन्य संबंधित विभागों ने अधिक उत्पादन की समस्या का समाधान करते हुए अनेक कदम उठाए। इस वजह से मात्र तीन चार माह में ही किसानों को उनकी उपज का बेहतर दाम मिलने लगा है।
सूत्रों का कहना है कि अब तक किसानों को बेहतर दाम नहीं मिल पाने का प्रमुख कारण बिचौलिए थे। इन्हें पूर्व की सरकारों का संरक्षण प्राप्त था। नयी सरकार ने सबसे पहले किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए उन्हें प्राप्त सरकारी संरक्षण को समाप्त करते हुए उन कंपनियों को सीधा मंडी में आने को प्रोत्साहित किया, जो बिचौलियों से माल खरीदते थे।
कंपनियों को पहले हर मंडी में पंजीयन करवाना पड़ता था। नई व्यवस्था में परिवर्तन कर कंपनियों को हर मंडी में अलग से पंजीयन करवाने की अनिवार्यता से मुक्त कर पूरे प्रदेश में सिर्फ एक जगह पंजीयन करवाने की सुविधा दी गई। दूसरी ओर किसानों को भी बिचौलियों के बजाय कंपनियों को उत्पाद बेचने के लिए प्रोत्साहन राशि का प्रावधान किया गया। इन प्रयासों से पिछले साल की तुलना में इस साल किसानों की उपज बिचौलियों के बजाय सीधा कंपनियों के पास पहुँची। इसके अलावा फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी को भी बढ़ावा देने के कदम उठाए गए। यह कंपनी किसानों के समूह की कंपनियां होती हैं। इन कंपनियों से किसानों को बेहतर भाव मिलता है।
सूत्रों का कहना है कि इसके अलावा तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन यह किया गया है कि मध्यप्रदेश की मंडियों में किसानों को नगद भुगतान करने की शुरुआत की गई। आज 257 मंडियों में से 200 से ज्यादा मंडियों में किसान को नगद भुगतान होता है। इससे किसानों की बिचौलियों पर निर्भरता कम हुई। जब किसान को पैसे की जरूरत होती है तो वह अपना उत्पाद लेकर मंडी पहुँचता है। पहले मंडियों में जब उसे तुरंत पैसा यानी नगद नहीं मिलता था, तो वह नगद पाने के लिए बिचौलियों के पास जाता था।
बिचौलिए किसानों की इस मजबूरी का फायदा उठाकर उन्हें नगद देने के एवज में उनसे सस्ते दामों में उत्पाद खरीद लिया करता था। जबसे मंडियों में किसानों को नगद मिलने लगा, उन्हें बिचौलियों को सस्ते दामों में बेचने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा। परिणाम यह हुआ कि इस बार किसानों की उपज बिचोलियों के पास पहुँचने का ग्राफ जीरो पर आ गया।
इस संबंध में मुख्यमंत्री कमलनाथ अक्सर कहते हैं कि उनकी सरकार ने किसानों के हित में निर्णय लेना प्रारंभ किए हैं। सरकार किसानों को ऋण माफी से ऋण मुक्ति तक ले जाने के लिए प्रतिबद्ध है। लोकसभा चुनाव के बाद इस दिशा में और तेजी से कदम उठाए जाएंगे।
मॉडल भाव किसी फसल के मंडियों में आकर बिकने के आधार पर तय किए जाते हैं। कृषि विभाग का दावा है कि वर्ष 2018 की बजाए 2019 में किसानों को बेहतर मॉडल भाव मिल रहे हैं।
प्रशांत
वार्ता
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