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आईआईटी इंदौर ने पत्थर के चूरे से रंगीन ईंटें बनाने की नई तकनीक विकसित की

इंदौर, 01 अप्रैल (वार्ता) मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी इंदौर) ने हाल ही में कम लागत में पत्थर के चूरे से रंगीन ईंटें बनाने की नई तकनीक विकसित की है।
आईआईटी इंदौर से प्राप्त जानकारी अनुसार संस्थान के ग्रामीण विकास एवं तकनीकी केंद्र ने सिविल अभियांत्रिकी, यांत्रिकी अभियांत्रिकी एवं भौतिकी विभाग के साथ मिलकर ब्रिक प्रयोगशाला में इन विशिष्ट ईंटो को विकसित किया है। सजावटी पत्थर को तैयार करने वाली इंडस्ट्री से निकलने वाले व्यर्थ पड़े लाखों टन रंगीन पत्थर के चूरे से मजबूत रंगीन ईंटो का निर्माण कर दिखाया है।
इन्हें खास तौर पर ग्रामीण परिवेश में उपयोग को ध्यान में रखकर बनाया गया है। प्रारंभिक स्तर पर इस शोध कार्य में पश्चिमी भारत के चार प्रमुख स्टोन्स धौलपुर, जैसलमेर, कोटा एवं मकराना को उपयोग में लिया है, जिन्हें आसानी से अन्य स्टोन वेस्ट के साथ भी दोहराया जा सकता है।
इस शोध कार्य में प्रमुखता से शामिल डॉ संदीप ने बताया अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कंस्ट्रक्शन एंड बिल्डिंग मैटेरियल्स जर्नल में प्रकाशित हुए इस शोध कार्य में आईआईटी इंदौर के छात्रों ने रंगीन पत्थर के चूरे में स्टील इंडस्ट्री से निकलने वाले एक अन्य वेस्ट मटेरियल को मिलाकर केमिकल के जरिये एक ऐसे मजबूत रंगीन कम्पोज़िट में तब्दील किया है जिसे ईंटे बनाने के काम में लिया जा सकता है।
केमिकल के कारण आने वाली लागत को कम करने के लिए उन्होंने इस मजबूत पदार्थ को ईंटो में सीमित मोटाई तक उपयोग में लिया है और दो लेयर वाली ऐसी विशिष्ट ईंटे बनाई हैं, जिन्हें काम में लेने पर प्लास्टर और पेंट करने की जरुरत नहीं होगी। ऐसी दो लेयर वाली ईंटो में ऊपर की लेयर में मजबूत रंगीन कंपोज़िट का प्रयोग किया है एवं नीचे की लेयर में सामान्य फ्लाई ऐश ईंटो का मसाला उपयोग में लिया गया है।
उन्होंने बताया कि संस्थान में प्री-मैन्युफैक्चर्ड उत्पादों एवं वेस्ट मटेरियल के लाभदायक उपयोग के क्षेत्र में पिछले चार सालों से गहन शोध कार्य चल रहा है। समय समय पर ब्रिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज के साथ किये गए इंटरेक्शन्स से शोधार्थियों को पता चला कि ग्रामीण परिवेश में आज भी आग में तपकर बनी लाल रंग की ईंटों को शुभ रंग की होने के कारण फ्लाई ऐश से पर्यावरण के अनुकूल बनी ग्रे रंग की ईंटों के बजाय प्राथमिकता दी जा रही है। आग में तपकर बनी लाल ईंटे वातावरण को प्रदूषित करती है, जिस पर देश के बहुत से राज्यों में इनकी मैन्युफैक्चरिंग पर रोक भी लगाई गई हैं।
फ्लाई ऐश की ईंटो को कृत्रिम रंगों से आसानी से रंगीन बनाया जा सकता था, लेकिन फिर ईंटों की कम लागत में तैयार करना मुश्किल हो पाता। इसलिए शोधार्थियों ने वेस्ट मटेरियल का प्रयोग किया और रंगीन पत्थर के चूरे जो की मजबूत और टिकाऊ होते हैं, उनका उपयोग करके रंगीन ईंटों को विकसित किया है।
इन ईंटो के उपयोग से प्लास्टर और पेंट की जरुरत न पड़ने से करीब 35 प्रतिशत लागत की बचत होने का अनुमान है। इन दो लेयर वाली ईंटो को औद्योगिक स्तर पर पांच रूपये प्रति ईंट से भी काम लागत पर बनाया जा सकता है। ऐसी ईंटो को सामान्य फ्लाई ऐश ईंटो को बनाने वाली मशीनों में मामूली संसाधनों के साथ आसानी से बनाया जा सकता है, जिसका सीधा फायदा देशभर के करीब बीस हजार फ्लाई ऐश ब्रिक निर्माण उद्योगों को होने का अनुमान है। इस शोध में संस्थान के प्राध्यापक, डॉ संदीप चौधरी, डॉ राजेश कुमार और डॉ अंकुर मिगलानी एवं शोध विद्यार्थी विवेक गुप्ता एवं देवेश कुमार का मुख्य योगदान रहा।
जितेंद्र बघेल
वार्ता
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