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26 सप्ताह के गर्भ गिराने की इजाजत देने से अदालत का इंकार

कोलकाता 29 जनवरी (वार्ता) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मंगलवार को डाउन सिंड्रोम और अन्य बीमारियों के कारण 39 वर्षीया महिला को 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की इजाजत देने से इंकार कर दिया।
न्यायमूर्ति तपव्रत चक्रवर्ती ने सरकारी अस्पताल एसएसकेएम से सोमवार को महिला के स्वास्थ्य के संबंध में विशेष जानकारी मांगी थी, जिसके बाद उस महिला का उस अस्पताल में स्वास्थ्य की जांच की गयी।
न्यायालय के समक्ष पेश की गई रिपोर्ट में एसएसकेएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने गर्भपात के खिलाफ राय दी। साथ ही ऐसे में नवजात शिशु के मानसिक और शारीरिक तौर पर कमजोर होने की भी संभावना व्यक्त की गई। बोर्ड ने कहा कि नवजात उन्नत देखभाल के सहारे जिंदा रह सकेगा।
मेडिकल बोर्ड ने एलिमेंटरी कैनाल में जन्मजात दोष और हृदय को सर्जरी की जरूरत बताते हुए कहा,“भ्रूण लगभग 26 सप्ताह का है। महिला को सी-सेक्शन के माध्यम से अपना पहला बच्चा था और इसलिए इसे हटाने की विधि सी-सेक्शन के माध्यम से होगी। इस तरह के मामले में बच्चे के जीवित पैदा होने की संभावना अधिक होती है।”
महिला के वकील कल्लोल बसु ने अदालत के सामने गुहार लगाई,“भ्रूण अजन्मा इंसान है और इसलिए 26 सप्ताह में गर्भपात कराने पर इसे भ्रूणहत्या नहीं माना जा सकता है।” उन्होंने कहा,“बच्चे के डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा होने की संभावना है जिससे नाक की हड्डी, पेट, ऊर्ध्वाधर और गर्भनाल में विकृति पैदा हो सकती है।”
बसु ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट अधूरी है और इसमें अदालत की आेर से मांगा गया कोई विशेष विवरण नहीं शामिल है।
उन्होंने अदालत से प्रार्थना की कि महिला को गर्भपात के लिए अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि वह एक बीमार बच्चे को पालने में आर्थिक रूप से अक्षम है और बच्चे की जीवन भर शारीरिक और मानसिक स्थिति को लेकर चिंतित है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता अभ्रोतोष मजूमदार ने एसएसकेएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए अदालत को बताया कि अगर महिला कुछ सप्ताह पहले ही अदालत में चली आती तो स्थिति अलग होती। उन्होंने कहा कि इस स्तर पर गर्भपात की अनुमति देना जोखिम भरा होगा।
अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को बरकरार रखते हुए महिला की याचिका को खारिज कर दिया।
संजय, संतोष
वार्ता
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