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स्वर्गाश्रम में गंगा तट पर अतिक्रमण के मामले में डीएम से मांगी रिपोर्ट

नैनीताल, 22 नवंबर (वार्ता) उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित स्वर्गाश्रम में परमार्थ निकेतन की ओर से गंगा तट पर किये गये अतिक्रमण व अवैध निर्माण के मामले में दायर जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रदेश के राजस्व सचिव को पक्षकार बनाया है और जिलाधिकारी पौड़ी को अतिक्रमण के मामले में उठाये गये बिन्दुओं पर रिपोर्ट पेश करने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ में शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता व अधिवक्ता विवेक शुक्ला ने अदालत को बताया कि उपजिलाधिकारी व सिंचाई विभाग की ओर से पेश रिपोर्ट में माना गया है कि सरकारी भूमि पर अतिक्रमण हुआ है लेकिन अतिक्रमण हटाने के नाम पर कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। सरकारी विभाग मामले पर लीपापोती कर रहे हैं।
श्री शुक्ला ने आगे बताया कि इसके बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राजस्व विभाग के सचिव को पक्षकार बना दिया है। साथ ही जिलाधिकारी पौड़ी को अतिक्रमण के मामले में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने को कहा है। उन्होंने बताया कि अदालत ने प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी निर्देश दिया कि वह जांच कर बताये कि परमार्थ निकेतन आश्रम में कितने कमरे मौजूद हैं और क्या आश्रम में सीवर ट्रीट प्लांट मौजूद है या नहीं। अदालत ने बोर्ड को यह भी निर्देश दिया कि वह रिपोर्ट में यह भी बताये कि आश्रम का सीवर गंगा नदी में प्रवाहित तो नहीं होता है।
अधिवक्ता श्री शुक्ला की ओर से याचिका में कहा गया है कि स्वर्गाश्रम में गंगा के किनारे परमार्थ निकेतन आश्रम ने सिंचाई विभाग की जमीन पर अतिक्रमण किया है। अतिक्रमित जमीन पर अवैध निर्माण किया जा रहा है। आश्रम द्वारा इस जमीन का व्यावसायिक उपयोग भी किया जा रहा है। इससे गंगा नदी में प्रदूषण बढ़ रहा है। गंगा घाट पर सरकारी भूमि पर शिव की मूर्ति स्थापित की गयी है और मूर्ति तक आने-जाने के लिये पैदल पुल का निर्माण किया गया है। हरिद्वार रूड़की विकास प्राधिकरण, सिंचाई विभाग व स्थानीय प्रशासन इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
सं, रवि
वार्ता
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