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उत्तराखंड परिवहन निगम की बेशकीमती भूमि को बेचने पर हाईकोर्ट ने लगायी रोक

नैनीताल 09 जनवरी (वार्ता) उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में राज्य परिवहन निगम की देहरादून में करोड़ों रुपये की सम्पत्ति को औने-पौने दाम पर शहरी विकास विभाग को बेचने के कदम पर रोक लगा दी है और यथास्थिति बनाये रखने के निर्देश जारी किये हैं। न्यायालय के इस कदम से परिवहन निगम के कर्मचारी उत्साहित हैं।
मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की युगलपीठ ने परिवहन निगम कर्मचारी यूनियन के महासचिव अशोक चौधरी की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई के बाद ये निर्देश जारी किये हैं। श्री चौधरी की ओर से अदालत को बताया गया कि राज्य परिवहन निगम देहरादून के प्रिंस चौक के पास करोड़ों रुपये मूल्य की साढ़े पांच एकड़ भूमि उपलब्ध है। परिवहन निगम की ओर से इस भूमि पर केन्द्रीय कार्यशाला संचालित की जा रही है।
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि परिवहन विभाग की ओर से 1 नवम्बर 2019 को एक शासनादेश जारी कर इस भूमि को मात्र 57 करोड़ रुपये के कीमत में शहरी विकास विभाग को स्थानांतरित कर दी गयी है। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी बताया गया कि इस भूमि का बाजार मूल्य 285 करोड़ रुपये है। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को यह भी कहा गया कि यूनियन की ओर से सरकार के पास प्रस्ताव रखा गया कि इस जमीन के बदले देहरादून स्थित अंतर्राज्यीय बस अड्डा को परिवहन निगम को स्थानांतरित कर दिया जाये। लेकिन सरकार ने यूनियन के प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं दिया है। इस बस अड्डा पर शहरी विकास विभाग का ही स्वामित्व है।
याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि परिवहन निगम बोर्ड के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्य सचिव एम रामास्वामी की ओर से भी सरकार के इस कदम का विरोध किया गया। इसके बाद सरकार के इस कदम को यूनियन की ओर से उच्च न्यायालय में आज चुनौती दी गयी।
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता एम.सी. पंत ने बताया कि अदालत ने मामले को सुनने के बाद सरकार के कदम पर रोक लगा दी है। साथ ही सरकार को यथास्थिति बनाये रखने के आदेश दिये हैं। परिवहन निगम कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष कमल पपनै और अन्य पदाधिकारियों व कर्मचारियों की ओर से उच्च न्यायालय के इस फैसले का स्वागत किया गया है।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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