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रक्षाबंधन के मौके पर खेला जाएगा अद्भुत पत्थर युद्ध बग्वाल

नैनीताल, 11 अगस्त, (वार्ता) देश में जहां भाई बहन के पवित्र त्योहार रक्षाबंधन मनाया जा रही है वहीं उत्तराखंड का एक क्षेत्र ऐसा भी है जहां शुक्रवार को अद्भुत बग्वाल (पाषाण युद्ध) खेला जाएगा। उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का यह क्षेत्र है देवीधुरा है जहां बग्वाल खेला जाता है।
चंपावत जनपद के देवीधुरा स्थित ऐतिहासिक खोलीखाण मैदान में रक्षाबंधन के मौके पर बग्वाल खेला जाएगा। हमेशा की तरह इस बार भी इस अद्भुत क्षण के साक्षी लाखों लोग रहेंगे। बग्वाल के लिये खोलीखाण मैदान तैयार हो गया है। प्रशासन की ओर से भी सभी तैयारियां पूरी ली गयी हैं।
कुमाऊँ में बग्वाल को असाड़ी कौतिक के नाम से भी जाना जाता है। असाड़ी कौतिक कई दिनों तक चलता है लेकिन इसका मुख्य आकर्षण रक्षा बंधन के मौके पर खेली जानी वाली बग्वाल होती है। यह अद्भुत खेल चार खामों और सात थोकों के लोगों के मध्य खेला जाता है। पौराणिक काल से खेली जा रही बग्वाल को कुछ जानकार कत्यूर शासन का पारंपरिक त्योहार मानते हैं जबकि कुछ इसे काली कुमाऊं से जोड़ कर देखते हैं।
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार पौराणिक काल में कुमाऊं के चमियाल, गहड़वाल, लमगड़िया और बालिग खामों में अपनी आराध्य बाराही देवी को मनाने के लिए नर बलि देने की प्रथा थी। चारों खामों से बारी बारी हर साल एक नर बलि दी जाती थी। एक बार चमियाल खाम की एक वृद्धा के परिवार से नर बलि दी जानी थी। परिवार में वृद्धा और उसका पौत्र ही जीवित थे। कहा जाता है कि वृद्धा ने मां बाराही की घोर स्तुति की। तभी से बग्वाल खेलने की परंपरा शुरू हुई।
बग्वाल बाराही मंदिर के खोलीखांण मैदान में खेली जाती है। लमगड़िया व बालिग खामों के रणबांकुरे एक तरफ जबकि गहड़वाल और चमियाल खाम के रणबांकुरे दूसरी ओर डटे रहते हैं। रक्षाबंधन के दिन सभी रणबांकुरे सबसे पहले सज-धजकर मंदिर परिसर में आते हैं। देवी की आराधना करते हैं। इसी के साथ शुरू हो जाता है अद्भुत खेल बग्वाल। माना जाता है कि बग्वाल तब तक खेली जाती है जब तक एक आदमी के बराबर खून न बह जाये। इस खेल के दौरान पहले फूल और फल आपस में चलाये जाते हैं। इसके बाद होती है पत्थरों की वर्षा। इस दौरान असीमित पत्थर एक दूसरे पर चलाये जाते हैं।
पुजारी की सहमति पर ही बग्वाल रोक दी जाती है। अंत में दोनों पक्ष एक दूसरे से गले मिलते हैं। एक-दूसरे को आशीष देते हैं और मंगलकामनाएं करते हैं। इस दौरान कुछ लोग घायल हो जाते हैं। उनके लिये प्रशासन की ओर से मेडिकल कैम्प की व्यवस्था रहती है। हालांकि मान्यता है कि इस खेल में कोई गंभीर रूप से घायल नहीं होता है।
स्थानीय निवासी भुवन चंद्र जोशी के अनुसार बग्वाल के लिए तन और मन की शुचिता आवश्यक है। तामसिक चीजों से दूर रहना पहली शर्त होती। इस ऐतिहासिक मौके पर यहां का हर प्रवासी बग्वाल के लिये देवीधुरा पहुंचता है। अगले दिन मां की शोभायात्रा के साथ असाड़ी कौतिक खत्म हो जाता है।
इस बार मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी बग्वाल के स्वयं साक्षी रहेंगे। सरकार ने इस वर्ष इस मेले को राजकीय मेले का दर्जा दिया है। इसलिए अन्य वर्षों के मुकाबले इस बार मेले को प्रशासन की ओर से अधिक भव्यता प्रदान की गयी है। मेला विगत आठ अगस्त को प्रारंभ हो गया था। वन विकास निगम के अध्यक्ष कैलाश चंद्र गहतोड़ी ने मेले का आगाज किया। मेले को सफल बनाने के लिये प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद है। जिला प्रशासन की ओर से कल इस मौके पर स्थानीय अवकाश घोषित किया गया है।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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