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किसानों को धान की बुवाई के लिए किया जा रहा जागरुक

जालंधर, 29 जून (वार्ता) कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा किसानों को धान की सीधी बुवाई के लिए जागरुक किया जा रहा है।
धान की सीधी बुबाई से भूजल को अन्य तकनीकों के बजाय 20-25 प्रतिशत तक बचाया जा सकता है। धान के मौसम की शुरुआत का एक सप्ताह में ही सीधी बुवाई धान का रकबा 550 एकड़ के भीतर हो गया है।
उपायुक्त वरिंदर कुमार शर्मा ने कहा विभाग सीधी बुवाई तकनीक के तहत इस क्षेत्र को दोगुना करने की उम्मीद कर रहा है जो न केवल श्रम पर किसानों की निर्भरता को कम करता है बल्कि भूजल को भी बचाता है। उन्होंने बताया कि जिले में कुल 1.70 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की जाती है। धान की बुवाई की पारंपरिक विधि में पुडलिंग और मैनुअल ट्रांसप्लांटिंग शामिल है, जिसमें बहुत अधिक समय लगता है, और परिणामस्वरूप अतिरिक्त पानी का उपयोग होता है।
उन्होंने कहा कि जालंधर के सभी 10 ब्लॉकों को अधिशेष घोषित कर दिया गया है, इस तकनीक से भूजल को बचाने में मदद मिलेगी और किसानों से पूरे दिल से इस तकनीक को अपनाने की अपील की जाएगी।
मुख्य कृषि अधिकारी (सीएओ) डॉ नज़र सिंह ने बताया कि किसानों को ड्रिल के माध्यम से धान के बीज बोने चाहिए। उन्होंने कहा कि धान की सीधी बुवाई के लिए, किसानों को पीआर 126 और पूसा बासमती 1509 जैसी छोटी अवधि की किस्मों की खेती करनी चाहिए। बीज की बुवाई मध्यम स्तर से भारी बनावट वाली मिट्टी में लेजर लेवलर का उपयोग करने के बाद की जानी चाहिए। धान की सीधी बुवाई के लिए हमें प्रति एकड़ 8 से 10 किलोग्राम बीज का उपयोग करना चाहिए।
सीएओ ने कहा कि परंपरागत रूप से, धान को बीज लगाकर उगाया जाता है और फिर पौधे के क्षेत्र में चार सप्ताह के बाद रोपाई की जाती है। फिर, पौधे बढ़ते हैं और खेतों को तीन से चार इंच तक पानी के नीचे रखा जाता है। पूरी तकनीक को बहुत अधिक श्रमशक्ति, पैसा और पानी की जरूरत है, उन्होंने बताया और कहा कि धान की सीधी बुवाई इको-फ्रेंडली तकनीक है जो पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा बहुत अनुमोदित है।
ठाकुर.श्रवण
वार्ता
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