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सामाजिक बहिष्कार मामले में पुलिस-प्रशासन न डाले पीड़ितों पर समझौते के लिए दबाव : कलसन

जींद, 24 अक्तूबर (वार्ता) नेशनल अलायंस फॉर दलित ह्यूमन राईट्स के संयोजक व वकील रजत कलसन ने जींद के उपमंडल उचाना के गांव छातर में अनुसूचित जाति के लोगों के सामाजिक बहिष्कार मामले में आरोप लगाया कि पुलिस प्रशासन “गैरकानूननी“ तरीके से पीड़ितों पर पंचायत आयोजित कर समझौता कराने के प्रयास किए जा रहे हैं, जो गलत है।
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार अधिनियम के तहत दर्ज मुकदमों में समझौता नहीं किया जा सकता है क्योंकि कानूनन यह अपराध नॉन कम्पाउंडेबल अपराधों की श्रेणी में आते हैं तथा इन अपराधों में कानून समझौता करने की अनुमति नहीं देता है। उन्होंने कहा कि अगर कोई पुलिस अधिकारी या प्रशासन के अधिकारी या खाप या पंचायत इस मामले में समझौता कराते हैं या कराने का प्रयास करते हैं तो उनके प्रयासों को एक्ट की धारा 15 (1)(9) के अंतर्गत धमकी माना जाएगा, जिस पर अलग से एफआईआर दर्ज की जा सकती है।
श्री कलसन ने कहा कि गांव छातर में अभी भी माहौल तनावपूर्ण है तथा सामाजिक बहिष्कार करने के आरोपी एससी एसटी एक्ट में दर्ज तीनों एफआईआर को वापिस कराने की कोशिशों में लगे हैं।
उन्होंने कहा कि गांव की पंचायतें तथा खापें अगर इंसाफ की बात करती हैं तो उन्हें खुद आरोपियों को पकड़ कर पुलिस के सामने पेश करना चाहिए तथा पीड़ित दलित समाज के लोगों को इंसाफ दिलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह पुलिस, प्रशासन तथा सरकार से मांग करते हैं कि गांव की दोनों दलित बस्तियों में स्थायी पुलिस चौकी की स्थापना की जाए ताकि पीड़ित खुद को सुरक्षित महसूस कर सकें।
श्री कलसन ने कहा कि गांव छातर में हुई हिंसा के मामले में जींद के एसपी का रोल सकारात्मक रहा वहीं दूसरी ओर उचाना के एसडीएम व थाना इंचार्ज तथा डीएसपी समेत अन्य अधिकारियों का रोल नकारात्मक रहा क्योंकि वह आरोपी पक्ष की पैरवी करते नजर आए तथा उन्होंने मीडिया में बयान देकर दर्ज कराए गए एससी एसटी एक्ट के मामलों को कमजोर करने का प्रयास किया तथा जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश की व पूरे अनुसूचित जाति समुदाय को बदनाम करने का प्रयास भी किया।
सं महेश विजय
वार्ता
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