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मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी से दिमाग का दौरा या लकवा का उपचार हुआ सम्भव:डॉ अग्रवाल

जालंधर,17 मई (वार्ता) दिमागी दौरा या लकवा मारने पर रोगी को बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि ब्रेन स्ट्रोक या लकवा के उपचार में मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी एक नयी क्रांति लाई है।
इंटरवेंशनल न्यूरोरेडियोलॉजिस्ट डाॅ विवेक अग्रवाल ने बुधवार को बताया कि यदि समय पर जांच करवा ली जाए तो एक लक्षण से बीमारी की असली स्थिति का पता लग जाता है। ऐसे में उक्त लक्षण दिमाग से जुड़ा हुआ हो तो थोड़ी से बरती लापरवाही से व्यक्ति ब्रेन स्ट्रोक (दिमाग का दौरा) पड़ऩे के कारण एक जटिल दिमागी बीमारी की चपेट में आ सकता है। उन्होंने कहा कि ब्रेन स्ट्रोक (दिमागी दौरा) पडऩे पर यदि मरीज को तुरंत ऐसे अस्पताल पहुंचाया जाए, जहां अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरो सर्जन हों तो मरीज जल्द स्वस्थ और अधरंग के असर को कम या खत्म किया जा सकता है।
फोर्टिस अस्पताल मोहाली के न्यूरो-इंटरवेंशन एंड इंटरवेंशनल रेडियोलॉजी विभाग के कंस्लटेंट डाॅ विवेक अग्रवाल ने कहा कि न्यूरो से संबंधित बीमारियों के लक्षण दिमागी हालत से जुड़े होते हैं, जिनमें भूल जाना, चेतना की कमी, एकदम व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव आना, क्रोधित होना और तनावग्रस्त आदि लक्षण शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यदि न्यूरोलॉजी से संबंधित मरीज का इलाज नहीं करवाया जाता, तो इसके गंभीर परिणाम निकल सकते हैं।
डाॅ विवेक अग्रवाल ने बताया कि हाल ही में ब्रेन स्ट्रोक के बाद चार घंटे बाद बेहोशी की हालत में 82 वर्षीय बुजुर्ग मरीज उनके पास पहुंची। उनके शरीर के बाएं हिस्से को लकवा हो गया था। चिकित्सा उपचार में यदि थोड़ी देर हो जाती तो वह महिला मरीज को घातक स्थिति में पहुंचा सकती थी। मरीज के दिमाग के दाहिनी ओर अवरूद्ध हुई रक्त आपूर्ति को मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी की मदद से आर्टरी से क्लाट को हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी को ब्रेन स्ट्रोक के रोगियों के लिए गोल्ड स्टैंडर्ड माना जाता है, वह मरीज अब पूरी तरह से स्वस्थ है। उन्होंने कहा कि दिमागी दौरा या लकवा मारने पर बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं है। उन्होंने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक के उपचार में क्रांतिकारी बदलाव आने से गंभीर से गंभीर मरीज स्वस्थ हो रहे हैं।
उन्होंने कहा कि दिमागी दौरे (ब्रेन स्ट्रोक) पडऩे पर मरीज को पूरी तरह से बचाया जा सकता है, बशर्ते उसे ऐसे अस्पताल पहुंचाया जाए, जहां एडवांस स्ट्रोक देखभाल की सुविधाएं उपलब्ध हों, क्योंकि दिमागी दौरे के दौरान मरीज के लिए हर सेकेंड मायने रखता है। उन्होंने कहा कि यदि अस्पताल व्यापक स्ट्रोक सुविधाओं से लैस नहीं है, तो मरीज को ऐसे अस्पताल में पहुंचाना व्यर्थ या समय बर्बादी है। मरीज स्वास्थ्य सुविधाएं न मिलने के कारण औसतन स्ट्रोक में हर मिनट 1.9 मिलियन न्यूरॉन्स खो देता है, जो हमेशा अधरंग या मौत का कारण बनता है।
ठाकुर श्रवण
वार्ता
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