राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Nov 17 2018 1:59PM लोकरूचि कंस मेला दो मथुरामाथुर चतुर्वेद परिषद के संरक्षक महेश पाठक का कहना है कि कंस के मेले को केवल चतुर्वेद समाज के कार्यक्रम के रूप में नही देखा जाना चाहिए । जिस प्रकार रामलीला के माध्यम से नई पीढ़ी में संस्कार डालने का प्रयास होता है उसी प्रकार देश विदेश में रहनेवाले चतुर्वेदी इस अवसर पर मथुरा आते हैं और समाज के प्रति अपने दायित्व को पूरा करने का संदेश नई पीढ़ी में ढ़ालने की कोशिश करते है़ं। श्री चतुर्वेदी ने यह भी बताया कि गर्ग संहिता के गोलोक खण्ड के नवे अध्याय के अनुसार देवकी के विवाह के समय इस आकाशवाणी ने कंस को विचलित कर दिया कि उसका आठवां भांजा ही उसका काल बनेगा। इस आठवें भांजे को मारने के लिए कंस ने कई राक्षसों को अलग अलग वेश में भेजा लेकिन जब उसके सारे प्रयास असफल हो गए तो उसका अंत निश्चय था। उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण बलराम जब मल्ल क्रीड़ा महोत्सव देखने आए तो उन्होंने धोबी बध, कुबलिया पीड़ बध और अंत में कंस द्वारा विशेष रूप से तैयार किए गए मल्ल चाणूर और मुस्टिक का वध किया था। धानुष महोत्सव में भाग लेने आए कृष्ण एवं बलराम को चतुर्वेद बालक मुख्य आयोजन स्थल पर जब ले जाने लगे तो उन्हें रास्ते में कंस का धोबी मिलता है। बातों ही बातों में वे उसे मार देते हैं और उसके कपड़े लेकर दर्जी के पास जाते हैं तथा उन्हें कटवाकर अपने नाप का बनवा लेते हैं। उनका कहना था कि लाठी इस मेले का आवश्यक अंग है जिस पर लगातार मेंहदी और तेल पिलाकर कई महीने में उसे तैयार किया जाता है। कंस मेले के दिन चतुर्वेद समाज के लोग गिरधरवाली बगीची से कंस के विशाल पुतले को लेकर लाठियों के साथ कंस अखाड़े तक जाते हैं तथा वहां पर कृष्ण के द्वारा कंस का बध कराते हैं और गाते हैं कंस बली रामा के संग सखा शूर से ये आए व्रजनगरी जू कंस के बध के बाद उसके चेहरे को बल्ली पर टांग कर आगे आगे चतुर्वेद समाज के लोग वापस जाते हैं और गाते हैंः- कंसै मार मधुपुरी आए कंसा के घर के घबराए। अगर चंदन से अंगन लिपाए गज मुतियन के चैक पुराये सब सखान संग मंगल गाए दाढ़ी लाए मूछउ लाए मार मार लऋन झूर कर आए।सं प्रदीपजारी वार्ता