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कुंभ-कल्पवासी वापसी दो अंतिम कुंभ नगर

डा गौतम ने कहा कि घर वापसी के समय कल्पवासी प्रसाद स्वरूप इसे अपने साथ लेकर जाते हैं। कल्पवास समाप्त कर जब श्रद्धालु अपने घर पहुंचते हैं तब परिजन इनका आदर भाव से पूजा (सम्मान) करते हैं। लोगों का मानना है कि एक मास तक त्रीवेणी तट पर कल्पवास करने वाले में पवित्रता के साथ भगवान का वास होता है। इसलिए इनके पैरों को जल से धोकर घरों में छिडकाव करने के साथ ही परिजन आचमन भी करते हैं।
इस मास में देवी-देवताओं का संगम तट पर निवास करते हैं। इससे कल्पवास का महत्त्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि माघ पूर्णिमा पर ब्रह्म मुहूर्त में नदी स्नान करने से शारीरिक समस्याएं दूर हो जाती हैं। इस दिन तिल और कंबल का दान करने से नरक लोक से मुक्ति मिलती है।
उन्होने बताया कि माघी पूर्णिमा ही वह दिन है जब कल्पवासियों और तीर्थयात्रियों का एक माह का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इसके बाद कल्पवासी सूर्योदय से पहले संगम में स्नान करके मां गंगा की आरती और पूजा करते हैं और अपने सामर्थ्य के अनुसार साधु, सन्यासियों, ब्राह्मणों और गरीबों को दान करते हैं। इसके बाद कल्पवासी अपनी कुटिया में यज्ञ और हवन भी करते हैं और मां गंगा का आभार व्यक्त करते हुए अपने अपने घरों को लौट जाते हैं
संयम, अहिंसा, श्रद्धा एवं कायाशोधन का ही 'कल्पवास' नहीं होता बल्कि उस दिनचर्या (एक माह तक ठंडे जल में स्नान करने, एक समय भोजन , जमीन पर शयन और आध्यात्मिक विचार)से उनके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में बढोत्तरी होती है।
दिनेश प्रदीप
जारी वार्ता
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