राज्य » उत्तर प्रदेशPosted at: Mar 3 2019 6:32PM गोरखपुर: पुण्यतिथि पर याद किये गये फिराक और अफगान उल्लाह
गोरखपुर, 03 मार्च (वार्ता) पूर्वी उत्तर प्रदेश में गोरखपुर को साहित्य सृजन की हृदय स्थली कहा जाता है। यहां साहित्य के तमाम सितारे जन्मे हैं लेकिन मार्च का महीना गोरखपुर की दो अजीम शख्सियतों के दुनिया से रुखसत होने के लिये याद किया जाता है। इन्हीं शख्सियतों में से एक हैं शायद रघुपति सहाय यानी फिराक गोरखपुरी और दूसरे हैं डॉ. अफगान उल्लाह खां। रविवार को दोनों की पुण्यतिथि पर एक कार्यक्रम में उन्हें श्रद्धांजलि दी गयी।
कार्यक्रम में गोरखपुर आकाशवाणी के पूर्व निदेशक डॉ. तहसीन अब्बासी और रवींद्र श्रीवास्तप जुगानी भाई ने कहा कि फिराक और अफगान उल्लाह खां को अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि दोनों में बगावती तेवर भी थे और स्वयं एक कारवां लेकर चलने की क्षमता भी थी।
पूर्वांचल के जाने माने चिकित्सक एवं समाजसेवी डॉ. अजीज अहमद ने कहा कि अफगान उल्लाह खां उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे और जब घर पर आते तो फिराक साहब के सिलसिले में इलाहाबाद से जुड़ी यादें ताजा कर देते थे।
फिराक सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. छोटेलाल यादव ने फिराक गोरखपुरी की उपेक्षा पर चिंता जताते हुये कहा कि उनके गांव में यदि कुछ बचा है तो उनका खपरैल का मकान। कई साल पहले उत्तर प्रदेश सरकार ने 61 लाख रुपये की लागत से यहां एक सामुदायिक केंद्र खोलने की घोषणा की थी लेकिन योजना तो फाइलों में ही बंद है।
मार्च माह में ही उर्दू के प्रसिद्ध शायर रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी की पुण्यतिथि तीन मार्च को होती है जबकि फिराक साहब पर शोध कार्य करके उन्हें साहित्यिक जगत में चमक दिलाने वाले डॉ. अफगान उल्लाह खां की पुण्यतिथि भी इसी महीने पड़ती है।
उर्दू में शायरी, अंग्रेजी में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में शिक्षणोत्तर कार्य, पंडित जवाहर लाल नेहरू से प्रभावित होकर कांग्रेस में शामिल होना और स्वतंत्रता संग्राम में जेल जाना फिराक साहब की जीवन यात्रा के ऐसे पडाव हैं जिनपर अलग-अलग शोध की आवश्यकता है। सम्भवत: यही कारण है कि शोध में पंजीकरण के बाद जब अफगान उल्लाह खां फिराक साहब से मिलने इलाहाबाद पहुंचे तो फिराक साहब ने उनसे पहला प्रश्न किया कि क्या मेरी कब्र खोदने आये हो। इसपर अफगान उल्लाह साहब ने कहा कि अपनी कब्र खुदवाने आया हूं। जानकार बताते हैं कि इसके बाद फिराक और खां में वो अटूट रिश्ता बना जिसमें फिराक तक पहुंचने के लिये अफगान उल्लाह ही जरिया बन गये।
डॉ. अफगान ने फिराक की शायरी पर अपना शोध पत्र लिखा तो साहित्य की दुनिया में चर्चा का विषय बन गये। इसी लिए प्रो. सैयद फजल-ए-इमाम ने कहा कि फिराक अपने आप में विरोधाभास का संकलन थे। इन विरोधाभासों को एक लय में पिरोकर नये सिरे से फिराक साहब के व्यक्तित्व को साहित्यिक दुनिया के सामने लाने का काम प्रो. अफगान ने किया था।
उदय विश्वजीत
जारी वार्ता