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उत्तर प्रदेश-योग प्रशिक्षण शिविर दो अंतिम गोरखपुर

श्री योगी ने अष्ठांगिक योग के सूत्रों को शिक्षा संस्थाओं से जोड़ते हुए कहा कि यम और नियम हमारे शिक्षा का
पहला कार्य है। संस्थाध्यक्ष एवं शिक्षक स्वंय की आतंरिक एवं वाह्य शुद्धता के साथ संस्था के परिसर की वाह्य और आतंरिक शुद्धि की प्रेरणा योग के यम-नियम से प्राप्त कर सकता है और बिना आन्तरिक एवं वाह्य शुद्धि के कोई महत्वपूर्ण कार्य नही हो सकता है। शिक्षण संस्थाओं को अपनी कक्षाओं को उपासना गृह के रूप में विकसित करना होगा।
उन्होंने इसी प्रकार आसन एवं समाधि की युगपरक शैक्षिक संस्थाओं के संदर्भ में व्याख्या करते हुए कहा कि स्थिर एवं सुखपूर्वक कार्य करते हुए हम ध्यान को लक्ष्य के प्रति एकाकार कर सिद्धि प्राप्त कर सकते है। अहर्निश प्रयास एवं अभ्यास के द्वारा हम कठिन से कठिन कार्य को आसान बना सकते है। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थाओं का परिसर, उनकी प्रयोगशालाएं, पुस्तकालय, कक्षाएं सुव्यवस्थित, स्वच्छ, सुन्दर एवंअत्याधुनिक उपकरणों से युक्त होनी चाहिए।
श्री योगी ने संस्थाध्यक्षों एवं शिक्षकों का संस्था के प्रति समर्पण, श्रद्धा एवं तपपूर्वक चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयत्न उस संस्था की विशिष्टता बन सकती है। उन्होंने कहा कि हमे मंजिल पर पहुॅचने के लिए अपनी संस्थाओं को शिखर तक पहुॅचाने के लिए योग के विभिन्न सूत्रों को जीवन पद्धति एवं कार्यपद्धति की सिढियां बनानी होगी। उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती वर्ष में हमे उनके दिये गये चार सूत्रों स्वच्छता, स्वदेशी,स्वरोजगार एवं स्वावलम्बन को अपनी विकास यात्रा का सूत्र बनाना होगा। टीम भावना से संस्थाओं के संस्थाध्यक्ष एवं शिक्षक मिलकर देश के लिए योग्य एवं राष्ट्रभक्त नागरिक तैयार करने के लिए अपनी-अपनी संस्थाओं के लिए समर्पित होकर कार्य करें यहीं युग धर्म है। महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् के संस्थापकों के लिए यही हमारी वास्तविक श्रद्धांजलि होगी।
उदय त्यागी
वार्ता
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