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उत्तर प्रदेश-योगी मठ मंदिर तीन अंतिम गोरखपुर

मुख्य वक्ता अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो0 सतीश चन्द्र मित्तल ने कहा कि हमारा देश प्राचीनतम, विशालतम और आध्यात्मिक देश होने के साथ-ंउचयसाथ जीवन्त राष्ट्र है। इस देश को विश्व गुरू बनाने में संत समाज ने अद्धभुत योगदान दिया इसलिए इस देश की संस्कृति और परम्परा सदैव जीवन्त रही है और रहेगी।
उन्होंने कहा कि भारतीय परम्परा बसुधैव कुटुम्बकम एवं विश्व बन्धुत्व की परम्परा है। हम पूरे विश्व को परिवार मानते है। हम जाति,धर्म, पंथ में कभी उलझते नहीं। संत गगा जल की तरह निर्मल होता है। संतो ने अपने त्याग एवं तपस्या के आधार पर इस देश को यहां तक पहुंचाया हैं। एक तरफ जहां पाश्चात्य संस्कृति खाओ पियो और मस्त
रहो की परम्परा में विश्वास करती है वहीं भारतीय संत परम्परा जियो और जिने दो की धारणा में विश्वास रखती है। संतो ने राष्ट्र उद्धार के लिए भोजन के साथ-साथ धर्म, आध्यात्म, ज्ञान एवं विज्ञान की बात की। संतो के एक-एक शब्द में जीवन दर्शन छुपा रहता है। संत परपीड़ा को समझता है इसलिए एक समरस समाज की स्थापना के लिए तत्पर रहता है। संतो
ने राजनीति में आदर्श स्थापित किया है।
श्री मित्तल ने कहा कि महाराणा प्रताप को उनके गुरू ने एवं छत्रपति शिवाजी को समर्थ गुरू रामदास जैसे संतो ने राष्ट्र सेवा के लिए प्रेरित किया। संत सिपाही के रूप में भी कई बार नजर आये हैं। रामकृष्ण परमहंस, संत तुकाराम जैसे संतो का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा संतो ने हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन किया है। देश की युवा पीढ़ी जब-जब दिगभ्रमित हुई है तब-तब संत समाज ही आगे आकर युवाओं को सच्चा मार्ग दिखाने का कार्य किया है। हम
विज्ञान एवं कला में आगे बढ़ाते हैं पर आध्यात्म एवं धर्म के बिना ये सब बेकार है और आध्यात्म और धर्म हमें संत समाज ही देता है।
विशिष्ट वक्ता डाॅ0 राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय,फैजाबाद के पूर्व कुलपति प्रो0 रामअचल सिंह ने कहा कि किसी राष्ट्र को यदि नष्ट करना है तो वहां कि संस्कृति को नष्ट कर दें। मिश्र, रोम, यूनान जैसे तमाम देश की संस्कृतियां नष्ट हो गई परन्तु भारतीय संस्कृति यदि आज भी जीवित है तो इसका पूरा श्रेय संत समाज को जाता है।
भारतीय विद्वानों ने भी भारत के वैदिक परम्परा का अनुसरण किया है। उन्होंने कहा कि ऋग्वेद संसार की प्राचीनतम ग्रंथ है। संत समाज सदैव राष्ट्र एवं समाज के बारे न केवल सोचता है अपितु राष्ट्रहित में कार्य भी करता है।
अयोध्या से पधारे जगद्गुरू रामानुजाचार्य स्वामी श्रीधराचार्य ने कहा कि देश के नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ही संत समाज का उदय हुआ है।
उदय त्यागी
वार्ता
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