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लोकरूचि-रामलीला अकबर चार अंतिम प्रयागराज

श्री कुमार ने बताया कि पुराने समय से शहर में मेले के चार केन्द्र थे। दो नगर में, एक दारागंज तथा एक कटरा में, अब इनमें से कौन सबसे लम्बे समय से सक्रिय है इसका वृतांत जानने के लिए कोई भी प्रमाणिक सामग्री उपलब्ध नहीं है लेकिन इन चारों केन्द्रों की वर्तमान रामलीला कमेटियां अपने को सबसे पुराने होने का दावा करती हैं।
उन्होंने बताया कि पहले नाम मात्र के पैसों से लीला का आयोजन होता था अब एक-एक दशहरा कमेटी लाखों रूपए इन रामदलों को निकालने में खर्च करने लगी। इलाहाबाद के दशहरे के अवसर पर रामलीला के सिलसिले में जो विमान और चौकियाँ निकलती हैं, उनका दृश्य भव्य होता है।
वरिष्ठ रंगकर्मी ने बताया कि सबसे पहले रामलीला का मंचन कब और कहां हुआ इसका भी कोई साक्ष्य नहीं है लेकिन कई साक्ष्य ऐसे मिलते हैं जो साबित करते हैं कि रामलीला का मंचन काफी पहले से किया जाता रहा है।
दक्षिण-पूर्व एशिया में कई पुरातत्वशास्त्री और इतिहासकारों को ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे साबित होता है कि इस क्षेत्र में प्राचीन काल से ही रामलीला का मंचन हो रहा था। इतिहास गवाह है कि जावा के सम्राट ‘वलितुंग’ के एक शिलालेख में ऐसे मंचन का उल्लेख है यह शिलालेख 907 ई के हैं। इसी प्रकार थाईलैंड के राजा ‘ब्रह्मत्रयी’ के राजभवन की नियमावली में रामलीला का उल्लेख है जिसकी तिथि 1458 ई में बताई गई है।
दिनेश प्रदीप
वार्ता
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