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लोकरूचि रावण वध दो अंतिम इटावा

रावण दल ने नरसिंह मन्दिर पर राम दल पर हमला बोला। इसके बाद सड़कों पर तीर तलवार , ढाल, बरछी भाला आदि प्राचीन अस्त्रों से दोनों दलों ने रामलीला मैदान तक डेढ़ किलोमीटर रास्ते पर युद्ध प्रदर्शन किया, लोग रोमांचित हो उठे।
प्रसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव भी दशहरा मनाने रामलीला मैदान पंहुंचे। उनका अभिनन्दन रामलीला समिति के अध्यक्ष अजय लम्बरदार और प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू आदि ने किया ।
राम की जय जयकार करते लोगों ने करीब 45 फुट ऊंचे रावण के पुतले पर हमला बोल दिया और पुतले की खपचचे कपड़ा आदि अपने संग बीन ले गए। यहां की रामलीला में रावण को फूंका नही जाता। राम विजय के बाद सीता मिलन और फिर राम दल ने देर रात्रि रामेश्वरम मन्दिर में भगवान शंकर की पूजा अर्चना की। विभीषण को लंका का राजपाट भी भगवान राम ने सौंपा ।
जानकार बताते हैं कि रामलीला की शुरुआत यहां 1855 में हुई थी लेकिन 1857 के ग़दर ने इसको रोका, फिर 1859 से यह लगातार जारी है। यहां रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण ताम्बे, पीतल और लोह धातु से निर्मित मुखौटे पहनकर मैदान में लीलाएं करते हैं। शिवजी के त्रिपुंड का टीका भी इनके चेहरे पर लगा होता है। जसवंतनगर के रामलीला मैदान में रावण का लगभग 15 फीट ऊंचा रावण का पुतला नवरात्र की सप्तमी को लग जाता है। दशहरे वाले दिन रावण की पूरे शहर में आरती उतारकर पूजा की जाती है और जलाने की बजाय उसके पुतले को मार-मारकर उसके टुकड़े कर दिए जाते हैं और फिर वहां मौजूद लोग रावण के उन टुकड़ों को उठाकर घर ले जाते हैं। जसवंतनगर में रावण की तेरहवीं भी की जाती है।
एक और खास बात यहां देखने को मिलती है जब लोग पुतले की बांस की खप्पची, कपड़े और उसके अंदर के अन्य सामान नोंच-नोंचकर घर ले जाते हैं। उन लोगों का मानना है कि घर में इन लकड़ियों और सामान को रखने से भूत-प्रेत का प्रकोप नहीं होता।
सं प्रदीप
वार्ता
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