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आधी-अधूरी तैयारियों के बीच होगा माघ का पहला स्नान

प्रयागराज,08 जनवरी (वार्ता) दिव्य कुंभ और भव्य कुंभ के बाद पतित पावनी गंगा, श्यामल यमुना और अदृश्य सरस्वती के विस्तीर्ण रेती पर दस जनवरी से शुरू हो रहे माघ मेले में दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं को माघ का पहला “पौष पूर्णिमा स्नान” आधी-अधूरी तैयारियों के बीच ही करना पड़ेगा।
साधु-संतो, कल्पवासियों के लिए संगम तट पर महीने भर के जप, तप, ध्यान के लिए करीब 2000 हेक्टेअर से अधिक क्षेत्रफल पर बसे तंबुओं के आध्यात्मिक नगरी का स्वरूप भले ही दिखलायी पड रहा है लेकिन बाढ़ का पानी अधिक समय तक टिके रहने से जमीन दलदली हाेने के कारण मेले की तैयारियो देर शुरू हो पायी। मेला क्षेत्र अभी पूरी तरह से बस नहीं पाया है। झूंसी का पूरे क्षेत्र में अभी केवल बिजली के खंभे खड़े खड़े होने के साथ कहीं कहीं आधे अधूरे तंबुओं का शिविर खड़ा है । मेला का करीब 40 फीसदी काम बाकी है। सुबह बारिश शुरू होने के कारण तैयारी के काम में भी व्यवधान आया जिसे काफी समय तक रोकना पड़ा।
माघ मेला का पहला पौष पूर्णिमा स्नान 10 जनवरी को है। यह स्नान अव्यवस्थाओं और आधी-अधूरी तैयारियों के बीच ही होगा। मेला क्षेत्र में अभी पूरा काम नहीं हो सका है। प्रशासन ने सभी काम पूरे करने की आखिरी तारीख 15 दिसम्बर से बढाकर 31 दिसम्बर किया था लेकिन बावजूद इसके अभी भी मेला आधा-अधूरा ही बसा है। मेला क्षेत्र में डेड़लाइन को आगे बढाने का सिलिसला यह पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी कई बार डेडलाइन डेड हो चुकी
है।
माघ मेला स्नान अब घंटो में रह गया है। बड़ी संख्या में कल्पवासी और साधु-संतों का मेला क्षेत्र में आना शुरू हो गया है। कल्पवासियों को बसाने का काम प्रयागवाल सभा करती है लेकिन इस बार मेला प्रशासन द्वारा कल्पवासियों को संगम से दूर बसाने पर चिंता व्यक्त किया है। इस बार सबसे बड़ी परेशानी कल्पवासियों के लिए है। दूर दराज से आने
वाले स्नानार्थी तो स्नान कर चले जायेंगे लेकिन कल्पवासी तो यहां टेंट के शिविर में एक माह का कल्पवास करते है। उन्हें दलदली वाली जमीन मिलने के कारण भूमि में सोना अपने आप दुरूह है।
झूंसी क्षेत्र में फूलपुर से आए कल्पवासी अरविंद मिश्र ने बताया कि इस बार बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। दलदली आवंटित भूमि पर बालू डालने के बावजूद भी उसकी नमी समाप्त नहीं हो रही है। कल्पवासी को भूमि पर ही आशन लगाना पड़ रहा है। भूमि पर पुआल या बालू डालने का भी कोई असर नहीं पड़ रहा है।
मेला प्रशासन का मानना है कि बाढ़ का पानी अधिक समय तक टिके रहने के कारण मेला की तैयारी देरी से शुरू हो पायी। इस कारण अधिकांश क्षेत्र नमी वाला है। उनका कहना है नमी होने के कारण गंगा किनारे सूखी जमीन है ही
नहीं लेकिन संस्थायें सूखी जमीन नहीं मिलने की शिकायत कर रही हैं।
मेला प्रशासन का कहना है माघ मेला कल्पवासियों और साधु-संतो का होता है। हमारा भरसक प्रयास होता है कि उन्हें किसी प्रकार से पहले सुविधा मुहैया करायें। लेकिन इस बार बाढ़ का पानी अधिक समय तक टिके रहने के कारण
नमी बनी हुई है। उन्होंने कहा कि सभी को सामंजस्य बनाकर चलना होगा।
प्रयागवाल महासभा के महामंत्री राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि प्रयागवाल ही कल्पवासियों को बसाता है। मेला में करीब पांच लाख कल्पवासी एक माह तक कल्पवास करते हैं। अभी तक मात्र 10 प्रतिशत ही कल्पवासी मेला क्षेत्र में पहुंच कर अपने शिविर वगैरह की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मात्र एक दिन बचा है माघ मास के पहले पौष पूर्णिमा स्नान के लिए लेकिन अभी मेला व्यवस्थित रूप से बस नहीं सका। बालू में चलने के लिए चक प्लेट ऐसी ही बेतरतीब पड़ी हैं। मेला क्षेत्र में मूल-भूत सुविधायें अभी पूरी तरह से व्यवस्थित नहीं है।
उन्होंने बताया कि सुबह से बारिश होने के कारण मेला क्षेत्र दुर्दशा का अम्बार बन गया है। मेला क्ष्रेत्र में बनी सड़कों पर चलना दूभर हो गया है। जगह-जगह चक प्लेट उखड़ी पड़ी हैं। उससे किसी भी समय कोई दुर्घटना घट सकती है।
दिनेश भंडारी
वार्ता
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