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फीचर कांशीराम इटावा दो इटावा

इटावा से 1991 मे सांसद बनने के बाद कांशीराम ने इलाहाबाद से वीपी सिंह के खिलाफ और अमेठी से राजीव गाॅधी के खिलाफ चुनाव लडा लेकिन नाकाम रहे। हालांकि उन्हे इटावा की अवाम ने वह ओहदा दिलाया जिसकी उन्हे लंबे समय से तलाश थी।
कांशीराम के पुराने साथी रहे खादिम अब्बास के पास कांशीराम से जुडी हुई ऐसी तस्वीरे है जो उनकी बसपा संस्थापक के प्रति प्रेम को उजागर करती है। एक तस्वीर में वह कांशीराम के नामाकंन के समय मौजूद है और दूसरी एक रोजअफतार समारोह मे जाने से पहले की है।
1991 के लोकसभा चुनाव में इटावा से बसपा सुप्रीमो कांशीराम को मुलायम की राजनीति ने 1,44,290 मत दिला कर जीत दिलाई थी जबकि मुलायम के खास रामसिंह शाक्य जनता पार्टी से प्रत्याशी थे और उन्हें मात्र 82624 मत मिले थे। मुलायम का कांशीराम के लिये यह आदर अचानक उभर कर सामने आया था जिसमें मुलायम ने अपने खास की पराजय करने में कोई गुरेज नहीं किया था।
इस हार के बाद रामसिंह शाक्य और मुलायम के बीच मनुमुटाव भी हुआ लेकिन मामला फायदे नुकसान के चलते शांत हो गया। कांशीराम की इस जीत के बाद उत्तर प्रदेश में मुलायम और कांशीराम की जो जुगलबंदी शुरू हुई इसका लाभ उत्तर प्रदेश में 1995 में मुलायम सिंह यादव की सरकार काबिज होकर मिला। दो जून 1995 को हुये गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा बसपा के बीच बढी तकरार इस कदर हावी हो गई कि दोनो दल एक दूसरे को खत्म करने पर अमादा भी हुए ।
सं प्रदीप
जारी वार्ता
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