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लोकरूचि -जलसंरक्षण दो अंतिम झांसी

किसानों की मेहनत रंग लायी और जिस गांव में पलायन के कारण वीरानी छायी थी वहां 15 वर्षों की इस सामूहिक मेहनत से जिस गांव में पीने का पानी नहीं था वहां बासमती धान की खेती शुरू की गयी और 100कुंतल से शुरू हुआ उत्पादन 2019 तक 25 हजार कुंतल पहुंच गया। सिलसिला यहीं नहीं थमा गेंहू का उत्पादन 500 कुंतल से शुरू हो कर उत्पादन 17 हजार कुंतल, 10 कुंतल से शुरू हुआ प्याज का उत्पादन दो हजार कुंतल तक पहुंच गया। इनके साथ तिलहन दलहन, साग सब्जी , मछली पालन और दुग्ध उत्पादन जैसे काम गांव में फिर से शुरू हुाने से किसान समृद्ध और साधनसंपन्न हुआ। खेती में परंपरागत और आधुनिक तकनीक के यथानुसार इस्तेमाल से आज आलम यह है कि चार बीघे मात्र की कास्तकारी वाले किसान के पास भी यहां अब बिना किसी लोन के खुद का टैक्टर है।
गांव से पलायन कर गये 99 प्रतिशत युवा वापस आकर परंपरागत तरीके से खेती में लग गये आज ये प्रदेश का समृद्ध गांव माना जाता है । नीतिआयोग ने अपनी जल प्रबंधन रिपोर्ट 20 में जखनी गांव को देश का सर्वोतम गांव माना है । जल शक्ति मंत्रालय ने इस मॉडल पर देश के 1050 गांव को जलग्राम के रूप में चुना जो प्रत्येक जिले में दो गांव होंगे । जिलाधिकारी बांदा ने 470 ग्राम पंचायत में जखनी मॉडल लागू किया है। सुल्तानपुर की जिलाधिकारी ने 14 गांवों को जलग्राम बनाने के लिए चुना है।
श्री पांडे के अथक प्रयास से बिना किसी सरकारी मदद और आधुनिक तकनीक के मात्र परंपरागत तरीकों से जखनी जैसे सूखे गांव को पानीदार बनाया गया । एक सर्वोदयी और जलयोद्धा की मदद से एक गांव में लाये गये आमूलचूल परिवर्तन को सरकार ने भी माना और जलशक्ति मंत्रालय के गठन के बाद जल सचिव यू पी सिंह ने 2019 में गांव का दौरा किया और जखनी को देश का पहला जलग्राम माना।
श्री पांडे ने कहा कि हमने कोई बड़ी जटिल तकनीक का इस्तेमाल भूजलसंरक्षण के लिए नहीं किया। मेढ़बंदी ही देश में भूजलसंरक्षण की सबसे पुरानी पद्धति है जिसे जखनी ने अपनाकर खुशहाली ही राह पकड़ी। अब बाकी लोग भूजल संरक्षण के लिए जखनी से प्रेरणा लेे। अपनी समस्या का समाधान खुद ही परंपरागत तरीकों से करने की कोशिश करें हां सरकार इसमें मददगार हो सकती है लेकिन पूरी जिम्मेदारी लोगों को लेनी होगी । वर्तमान में जरूरत है कि ऐसे परंपरागत मॉडलों को पूरे बुंदेलखंड और देश में लागू किया जाए जिससे न केवल गांवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके बल्कि समाज के सभी वर्गों का विकास परंपरागत तरीके से किया जा सके। ऐसे मॉडलों से ही प्र्रधानमंत्री मोदी की देश को आत्मनिर्भर बनाने की सोच को मूर्त रूप दिया जा सकता है।
सोनिया
वार्ता
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