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लोकरूचि-सावन झूला दो अंतिम मथुरा

राधारमण मंदिर की प्रबंध समिति के सचिव पद्मनाभ गोस्वामी का कहना है कि वे नही चाहते कि मंदिरों के कारण ही ब्रज में करोना का संक्रमण तेज हो।
द्वारकाधीश मंदिर के सावन का प्रमुख आकर्षण इसमें सवा महीने तक पड़नेवाले सोने चांदी के हिंडोले होते हैं। मंदिर के विधि एवं मीडिया प्रभारी राकेश तिवारी एडवोकेट ने बताया कि तृतीय पीठाधीश्वर कांकरौली नरेश गोस्वामी ब्रजेश कुमार के आदेशानुसार मंदिर में इस बार सोने चांदी के हिंडोले नही डाले जाएंगे।
उन्होंने कहा कि एक सोने का तथा दो चांदी के हिंडोले इतने विशालकाय हैं कि तोषाखाने से इन्हे निकालने के लिए एक साथ कई लोगों की आवश्यकता होती है। अगर इन हिंडोलों को निकाला जाता है तो कोरोना के चलते सामाजिक दूरी बनाए रखने का नियम टूटता है। पिछले वर्षों में ये हिंडोले सावन के शुरू होते ही मंदिर में डाल दिए जाते थे और जन्माष्टमी तक पड़े रहते थे।
उनका यह भी कहना था कि सामाजिक दूरी को बनाये रखने के चलते हिंडोला और घटाओं का आयोजन तो अवश्य किया जाएगा किंतु उस प्रकार विस्तृत रूप में यह कार्यक्रम इस बार नही होंगे जिस प्रकार पिछले वर्षों में होते थे। प्रत्येक आयोजन में सामाजिक दूरी को बनाने का नियम सबसे पहले देखा जाएगा। इस बार हिंडोला उत्सव 7 जुलाई से प्रारंभ हो जाएगा।
मदनमोहन मंदिर जतीपुरा के मुखिया ब्रजेश जोशी ’’ब्रजवासी’’ ने बताया कि बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों में हिंडोला उत्सव का विशेष महत्व इसलिए होता है1 इन मंदिरों में यशोदा भाव से सेवा होती है। छोटे बच्चे को झूला बहुत अधिक पसन्द होता है, इसलिए उसके झूले को बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिर में आकर्षक स्वरूप देकर उसे हिंडोले का नाम दे देते हैं। बल्लभकुल सम्प्रदाय के मंदिरों से प्रारंभ हुई यह परंपरा धीरे धीरे अन्य मंदिरों में भी शुरू हुई तो हिंडोले को आकर्षक बनाने की एक प्रकार से प्रतियोगिता हो गई। मां यशोदा कान्हा को हिंडोले में बैठाकर सुला जाती हैं तभी एक सखी आती है और हिंडोले को झुलाने लगती है । पर मां यशोदा का ध्यान जैसे ही उधर गया उन्होंने उसे हिदायत दे दी
मेरो लाला झूलै पालना नेक हौले झोटा दीजौ।
द्वारकाधीश मंदिर में अलग अलग तिथियों में अलग अलग प्रकार का हिंडोला बनता है, कभी फिरोजी जरी का हिंडोला बनता है तो कभी केसरी चित्रकाम का बनता है ,कभी गुलाबी मखमल का हिंडोला बनता है ,तो कभी लाल सुनहरी हिंडोला बनता है।कभी कली का हिंडोला बनता है तो कभी फूल पत्ती का हिंडोला बनता है। किंतु लहरिया घटा के दिन तो एक साथ नौ हिंडोले इसलिए डाले जाते हैं कि कान्हा को जो हिंडोला पसंन्द आ जाय वह उसमें झूूल सकता है।
सावन में इस मंदिर की दूसरी विशेषता घटा महोत्सव है। अलग अलग तिथियों में रंग बिरंगी घटाएं बनाई जाती हैं कभी केसरी घटा डाली जाती है तो कभी गुलाबी घटा, कभी आसमानी घटा डाली जाती है तो कभी लाल घटा।जिसमें कान्हा के गाय चराने जाने का प्रस्तुतीकरण के साथ साथ सावन का दृश्य प्रस्तुत किया जाता है। इस मंदिर की काली घटा को देखने के लिए तो जनसमूह एकत्र हो जाता है क्योंकि इसका इतना जीवन्त प्रस्तुतीकरण किया जाता है कि मंदिर के अन्दर ऐसा लगता है कि काली घटा छाई हुई है साथ में बारिश भी हो रही है और बिजली भी चमक रही है बादल भी गरज रहे हैं।
यह दृश्य इतना मनोहारी होता है कि दर्शक मंदिर से बाहर बड़ी मुश्किल से निकलता है। इस बार यह घटा 28 जुलाई को डाली जाएगी। मंदिर में घटाओं के मनोरथ भी होते हैं।चाहे हिंडोले का आयोजन हो या घटाओं का, सभी के केन्द्रबिन्दु श्रीकृष्ण होते हैं इसलिए सावन में इस मंदिर का कोना कोना कृष्णमय हो जाता है।
सं विनोद
वार्ता
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