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सहारनपुर में ऑनलाईन कक्षाओं में छात्रों को दी जाय पराली प्रबन्धन की जानकारी : सिंह

सहारनपुर, 22 सितंबर(वार्ता) उत्तर प्रदेश में सहारनपुर के जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने कहा है कि शिक्षक ऑनलाईन कक्षाओं में विद्यार्थियों को पहले पांच मिनट पराली प्रबंध के बारे में जानकारी दे।
आधिकारिक सूत्रों ने मंगलवार को यहां बताया कि जिलाधिकारी ने पराली प्रबन्धन के लिए किसानों को जागरूक करने के लिए जिला विद्यालय निरीक्षक को निर्देश दिया है कि वर्तमान में सरकारी, अर्द्धसरकारी एवं प्राईवेट विद्यालयों द्वारा विद्यार्थियों की ऑनलाईन कक्षाएं संचालित हो रही है। ऐसे में प्रत्येक अध्यापक द्वारा प्रारम्भ के पांच मिनट पराली प्रबन्धन से होने वाले लाभ व हानियों के बारे में विद्यार्थियों को जानकारी उपलब्ध कराएं। उन्होंने बताया कि खेतों में फसल के अवशेष प्रबन्धन से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढती है। जिसके फल स्वरूप मिट्टी की भौतिक गुणों में सुधार होता है। जिसका सीधा प्रभाव किसान की उत्पादन एवं उत्पादकता की वृद्धि के रूप में परिलक्षित करता है। उन्होंने कहा कि मृदा की जल धारण क्षमता बढने के साथ-साथ मृदा में वायु संचार भी बढता है। कार्बनिक पदार्थ बढने से पोषक तत्व की उपलब्धता भी बढती है जिसमें रासायनिक उर्वरक की आवश्यकता कम पडती है एवं किसानों की लागत कम होती है।
जिलाधिकारी ने कहा कि फसल अवशेष प्रबन्धन से पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता है जिससे वायु भी प्रदूषित नही होती है एवं हमारा स्वास्थ्य भी उत्तम रहता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाने भूमि को मिलने वाले पोषक तत्व से वंचित रह जाती है। फसल अवशेष जलाने के फलस्वरूप मृदा का तापमान बढने के कारण जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुए आदि नष्ट हो जाते है।
उन्होंने कहा कि फसल अवशेष जलाएं जासने से ग्लोबल वार्मिंग को बढावा मिलता है। जिसके फलस्वरूप बाढ, सूखा, भूस्खलन जैसी परिस्थितियां उत्पन्न होती है। फसल अवशेष जलाने से उत्पन्न जहरीली गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी होती है, जिससे आंखों में जलन एवं त्वचा रोग तथा सूक्ष्म कणों के कारण जीर्ण हृदय एवं फेफडों की बीमारी के रूप में मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
श्री सिंह ने बताया कि एक टन (1000 किग्रा) धान का फसल अवशेष जलाने से लगभग 5.5 किग्रा नाईट्रोजन (12 किग्रा यूरिया), 2.3 किग्रा फासफोरस आक्साईड (14 किग्रा सिंगल सुपर फास्फेट), 25 किग्रा पोटेशियम आक्साईड (40 किग्रा म्यूरेट आफ पोटास), 1.2 किग्रा सल्फर व धान के शोषित 50-70 प्रतिशत सूक्ष्म पोषक तत्व एवं 400 किग्रा कार्बन की हानि होती है। पोषक तत्वों के नष्ट होने के अतिरिक्त मिट्टी के कुछ गुण जैसे भूमि का तापमान, पी.एच., नमी, उपलब्ध फासफोरस एवं जैविक पदार्थों पर भी विपरीत प्रभाव पडता है।
जिलाधिकारी ने कहा कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम की धारा-24 एवं 26 के तहत खेत में फसल अवशेष जलाया जाना एक दण्डनीय अपराध है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए दो एकड से कम क्षेत्र के लिए 2500 रूपये प्रति घटना, दो से पांच एकड के लिये 5000 रूपये प्रति घटना, पांच एकड से अधिक क्षेत्र के लिये 15000 रूपये प्रति घटना। अपराध की पुनरावृत्ति करने पर कारावास एवं अर्थ दण्ड से दण्डित किया जायेगा।
सं भंडारी
वार्ता
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