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संस्कृत को जाने बगैर भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता:आनंदीबेन

लखनऊ, 09 जनवरी (वार्ता) उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल ने कहा है कि संस्कृत भाषा को जाने बिना भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता और यह देव भाषा है और भारत की आत्मा है।
श्रीमती पटेल ने आज यह बातें संस्कृत भारती, अवध प्रान्त की ओर से शनिवार को राजभवन में स्मारिका ‘अवधसम्पदा’ के लोकार्पण के अवसर पर कहीं। उन्होंने कहा कि, मुझे विश्वास है कि संस्कृत भारती द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘अवध सम्पदा’ देव भाषा संस्कृत को और आगे ले जाने में अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वहन करेगी।
उन्होंने कहा कि देश के सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक, दार्शनिक, ऐतिहासिक और सामाजिक जीवन का विकास संस्कृत भाषा में ही समाहित है। भारत की प्रतिष्ठा में संस्कृत एवं संस्कृति ही मूलभूत तत्व हैं। संस्कृत साहित्य वास्तव में ज्ञान का भण्डार है। कहा कि, संस्कृत को जाने बिना भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाना नहीं जा सकता।
राज्यपाल ने कहा कि, संस्कृत वस्तुतः हमारी संस्कृति का मेरूदण्ड है, जिसने हजारों वर्षों से हमारी अनूठी भारतीय संस्कृति को न केवल सुरक्षित रखा है, बल्कि उसका संवर्धन तथा पोषण भी किया है। यह भाषा हमारी वैचारिक परम्परा, जीवन दर्शन, मूल्यों व सूक्ष्म चिन्तन की वाहिनी है। हमारे देश की हजारों सालों की वैचारिक प्रज्ञा को समझने के लिए संस्कृत ही एक माध्यम है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा को नई शिक्षा नीति में विशेष स्थान प्राप्त हुआ है। नई शिक्षा नीति के तहत संस्कृत की प्रासंगिकता को नई दिशा मिल सकती है। स्कूली शिक्षा में अब त्रि-भाषा सूत्र चलेगा। इसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा। इससे आज की युवा पीढ़ी संस्कृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन से लाभान्वित होगी।
श्रीमती पटेल ने कहा कि नई शिक्षा नीति से संस्कृत भाषा को मजबूती मिलेगी, संस्कृत आधुनिक विज्ञान की भाषा है। आज देश में कई गांव ऐसे हैं, जहां सम्पूर्ण संस्कृत भाषा का आचरण होता है। हम सभी को संस्कृत भाषा के प्रचार के लिए प्रयासरत होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत के लिए जो प्रावधान किए गये हैं, उनमें त्रि-भाषा की मुख्य धारा में विकल्प के साथ विद्यालय और उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों पर संस्कृत का विकल्प उपलब्ध कराया जाएगा। फाउंडेशन और मिडिल लेवल पर सरल संस्कृत की पुस्तकें, माध्यमिक कक्षा तक संस्कृत पढ़ाई जाएगी। उच्चतर शिक्षा की मजबूती के लिए समकालीन विषयों जैसे गणित, खगोल शास्त्र, दर्शन शास्त्र, नाटक, योग आदि के साथ संस्कृत विश्वविद्यालय बहुविषयी संस्थान बनेंगे। सभी भाषाओं का शिक्षण नवीन, अनुभवात्मक, एप्स, सांस्कृतिक पहलुओं एवं वास्तविक जीवन के अनुभवों के साथ कराया जाएगा।
इसके साथ ही नैतिक मूल्यों पर जोर दिया जाएगा। पंचतंत्र, हितोपदेश, जातकों की कहानियां पढ़ाये जाने के साथ सभी भारतीय भाषाओं में ई-कन्टेन्ट, सॉफ्टवेयर, ई-सामग्री तैयार की जायेगी।
राज्यपाल ने कहा कि जिम्मेदार लोग नवीन शिक्षा नीति के अनुसार संस्कृत भाषा तथा साहित्य के विस्तार की व्यापक कार्य योजना तैयार करें। कार्य योजना का निर्माण आधुनिक संदर्भों में किया जाए, जिससें संस्कृत में विद्यमान महान ज्ञान सम्पदा को अधिकत्तम लोगों तक पहुंचाया जा सके।
इसके पूर्व संस्कृत भारती के प्रान्त अध्यक्ष शोभन लाल उकील ने स्वागत तथा सचिव कन्हैया लाल झा ने संगठन की संगठनात्मक ढांचा को विस्तार से बताते हुए कहा कि संस्कृत भारती का प्रयास है कि संस्कृत भाषा सबके मुख में हो। संस्कृत का सर्वत्र सम्मान है। कार्यक्रम का संचालन संगठन मंत्री डॉ. गौरव नायक तथा आभार ज्ञापन जितेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। इसमें बृजेश, साधना, अनुज, रत्नेशमणि,डॉ. आलोक धवन, डॉ. वन्दना रॉय, गिरीश गुप्ता, हनुमत, मुकेश आहूजा इत्यादि उपस्थित रहे।
त्यागी
वार्ता
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