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उत्तर प्रदेश-इटावा बुनकर दो अंतिम इटावा

इटावा के बुनकरो का कहना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम जेहन में आते ही एक अजीब सी ताकत का एहसास होता है। गांधी ने गुलामी के दौर में देशवासियों में एक नई उर्जा का सृजन किया था ,जिसके बूते देश को आजादी मिली,महात्मा गांधी ने देश को जो कुछ दिया ,उसका बखान करने की जरूरत नहीं हैं लेकिन उन्होंने हथकरघा के रूप में एक कारोबार देशवासियों को दिया है। इसी कारोबार का खासा असर उत्तर प्रदेश के इटावा में देखा जाता है। इटावा के बुनकर महात्मा गांधी को प्ररेणास्त्रोत मान कर आज भी अपना कारोबार करने में तन्मयता से जुटे हुये है।
गौरतलब है कि चंद्रभान गुप्त ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य की पहली सूत मिल 1967 में इटावा में स्थापित कराई थी। यह सब इटावा के बुनकर कारोबार को ध्यान में रख कर उनके हितो के लिए किया गया महत्वपूर्ण कदम समझा गया । जिस समय सूत मिल की स्थापना हुई उस समय इटावा एंव आसपास के बुनकरो को सूत सस्ते दर पर मिलना शुरू हो गया लेकिन सरकार की योजनाओं का लाभ ज्यादा समय तक बुनकर उठाने में सफल नहीं हो सका क्यों कि सरकारी मशीनरी बुनकरो का अहित करने में जुट गयी।
इटावा में एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार के करीब बुनकर है,जो अपने बुनकरी कारोबार से जुड कर अपनी रोजी रोटी चला रहे है। 1967 में इटावा में संचालित सूत मिल से एक समय इन बुनकरों को सूत मिला करता था लेकिन 1999 से इस सूत मिल के बंद हो जाने से इटावा का बुनकर उद्योग ठप हो गया, सूत मिल के बंद के बंद हो जाने से इटावा का बुनकर अपनी रोजी रोटी के लिये दूरस्त से सूत मंगाने लगे,महगां सूत मिलने से सूत उघोग ठप हो गया है,इसके ऊपर बुनकर माफियाओं द्धारा संचालित बुनकर सोसायटियों के घोटाले बाजी ने इस उघोग की कमर तोडकर रख दी है, बताते चले कि इटावा में करीब 500 से अघिक बुनकर सोसायटियां संचालित हैं।
वर्ष 1999 में इटावा का सूत मिल उत्तर प्रदेश सरकार की बेरूखी के चलते बंद कर दिया गया तब से तमाम जी तोड कोशिशे की गयी लेकिन न तो बुनकरो को और न ही किसी राजनेता को कोई कामयाबी सूत मिल को चालू कराने की दिशा में नहीं मिल सकी। आज भले ही इटावा के बुनकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आदर्श मानकर अपना कारोबार करने मे सफलतापूर्वक जुटा हो लेकिन सरकारी नुमाइंदे इटावा के बुनकरो का नुकसान करने में जुटे हुये है फिर भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से यहां के बुनकर विपरीत हालात में भी अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं।
आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी इटावा भी आये थे। इटावा स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बड़ा महत्वपूर्ण शहर था। गांधी जी ने 1921 में जब असहयोग आंदोलन चलाया तो इटावा के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मौलाना रहमत उल्ला के नेतृत्व में यहां के कांग्रेस जनों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वर्ष 1922 में काकोरी कांड में इसी जिले के ज्योति शंकर दीक्षित और मुकुंदी लाल गिरफ्तार किये गये। इसी दौरान जवाहर लाल नेहरू भी कई बार इटावा आये।
गांधी जी इटावा की इस देशभक्ति से परिचित थे वे देशभर में जनजागरण अभियान को निकल पड़े थे तो फिर इटावा उनकी दृष्टि से ओझिल नहीं हो सकता था। वर्ष 1929 में वे इटावा आये और पुराना शहर के बजरिया छैराहा स्थित जुगल बिहारी टंडन जुग्गी लाला की कोठी पर कुछ देर रुक कर औरैया के लिए रवाना हुए। यहां के पूंजीवादी वर्ग ने भी गांधी जी के आह्वान पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और गांधी का चरखा हर कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पहुंच गया।
आज भी इटावा वासी इस बात से रोमांचित हैं कि पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और बंधुत्व का संदेश देने वाला यह महापुरुष कभी उनके जिले में भी आया था।
इटावा जिले में बुनकर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सांसद डा. रामशंकर कठेरिया सूत मिल का मुद्दा लोकसभा में उठा चुके है । उन्होंने सदन के माध्यम से केंद्र सरकार से इटावा जिले में नई जगह पर सूत मिल की स्थापना कराने की मांग की लेकिन इस पर सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हुई है ।
संसद में सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि इटावा के बुनकर उद्योग का पूरे देश में नाम रहा है । यहां बनने वाले सूत के कपड़े की पहचान देश भर में होती थी । गरीबों को रोजगार भी मिल जाता था। उनका तर्क है कि पूर्ववर्ती सपा सरकार ने इटावा शहर में बंद पड़ी सूत मिल की 44 एकड़ जमीन को आवास विकास को 102 करोड़ रुपये में बेच दिया । अब आवास विकास यहां कालोनी विकसित कर रहा है । इटावा में रोजगार को कोई बड़ा कारखाना नहीं है। ऐसे में अब आवश्यक हो गया है कि इटावा में सूत मिल के लिए कोई नई जगह तलाशी जाए। वहां सूत मिल बने। जिससे बुनकर उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। गरीब बुनकरों को रोजगार का साधन मिलेगा।
जिस सूत मिल की स्थापना को लेकर इटावा के सांसद डा.रामशंकर कठेरिया ने सवाल उठाया है । इस सूतमिल ने न केवल हजारो लोगो को रोजगार दिया ,बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार मे उल्लेखनीय योगदान भी दिया है।
सं त्यागी
वार्ता
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