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राष्ट्रीय-मुंशी प्रेमचन्द जयंती दो अंतिम गोरखपुर

मुंशी प्रेमचन्द जमीन से सम्बंध रखते थे और आज भी वही जमीन मौजूद है। उन्होंने अपने लेखन कार्य के दूसरे पडाव की अधिकतर कहानियां गोरखपुर में लिखी और यहीं से उनका आदर्शवाद यथार्थवाद में बदल गया इसीलिए इस क्षेत्र से उनका जुडाव महत्वपूर्ण माना जाता है।
वर्ष 1936 में उनके निधन के बाद इस अंचल में मौजूद गरीबी, पिछडापन और किसानों एवं नौजवानों की समस्याओं को साहित्य में मुखर करने वाला कोई दूसरा साहित्यकार उनके जैसा पैदा नहीं हुआ।
प्रेमचन्द के उपन्यासों में वरदान प्रतिज्ञा, सेवा सदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रगभूमि कर्मभूमि, गोदान, मनोरमा और कहानियों में उनके कुल 21 कहानी संग्रह प्रकाशित हुए जिसमें 300 से अधिक कहानियां समाहित रही। प्रमुख कहानी संग्रहों में शोजे वतन, सप्त सरोज, नमक का दरोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून,प्रेत प्रतिमा, प्रम तिथि, प्रम चतुर्थी, सप्त सुमन, प्रम प्रतिज्ञा, प्रेम पंचती, प्रेरणा, समर यात्रा और नवजीवन आदि शामलि है। इसके अलावा नाटक में संग्राम, कर्थला, प्रेम की वेदी तथा जीवनियों में महात्मा शेख सादी, दुर्गादास, कलम, तलवार और त्याग शामिल है।
गोरखपुर के जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान का अतीन हिन्दी एवं उदर्म के महान्तम साहित्यकारों में शामिल मुंशी प्रम चन्द की यादों से गहरायी से जुडा है। उनकी यादों को संजोने के लिए यहां उनके नाम से संग्रहालय भी स्थापित किया गया था लेकिन अधिकारियों की उदासीनता के अंधेरे में यह स्वर्णीमत अतीत डूब चुका है। यहा रखी उनसे जुडी वस्तुएं कहां गयी इसका ठीक से किसी को पता नहीं है। उनकी रचनाओं व उनसे जुडी यादों को संजाने के लिए रानी लक्ष्मी बाई प्रशिक्षण हाल से सटे प्रेम चन्द संग्रहालय बनाया गया था। इस भवन में उनसे जुडी वस्तुओं को रखा गया था लेकिन रख रखाव के अभाव में यह भवन जर्जर होता गया और इसमें रखी वस्तुएं खराब होती गयी। इसमें मौजूद कुछ टूटी आलमारिसां और बिखरे कागज प्रशासनिक उदसशीनता की कहानी बयां करते हैं।
समाज की बारिकियों को अपनी कलाजयी कृतियों में बेहद खूबसूरत से पिरोने वाले कथाकार-उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द के विचारों की प्रासंगिकता से शायद ही कोई इन्कार कर सकता है। दुखद पहलू यह है कि प्रासंगिकता होने के बावजूद भी कृतियां नयी पीढी तक नहीं पहुंच पा रही हैं।
अध्ययन के दायरे में आने वाले कहानियो और उपन्यासों को तो नयी पीढी जरूरत समझकर पढ ले रही है लेकिन उनकी अन्य मशहूर कृतियों को पढने की जदोजहद इन युवाओं में नहीं दिख रही है। 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के समीप लमहीं गांव में पैदा होने वाले प्रख्यात साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द का बचपन और आधा रचना संसार पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर की धरती से जुडा है।
उदय प्रदीप
वार्ता
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