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दुर्गा खोटे का फिल्मों में काम करना उनकी मजबूरी भी थी। दुर्गा खोटे जब महज 26 साल की थी तभी उनके पहले पति विश्वनाथ खोटे का असामयिक निधन हाे गया। परिवार चलाने और बच्चों की परवरिश के लिये दुर्गा खोटे
ने फिल्मों में काम करना जारी रखा। बाद में उन्होंने मोहम्मद राशिद नाम के व्यक्ति से दूसरा विवाह किया लेकिन उनके साथ गृहस्थी ज्यादा दिन नहीं चल पाई । इस बीच. उनके छोटे बेटे हरिन का भी देहांत हो गया । दुर्गा खोटे ने 1937 में एक फिल्म..साथी.. का निर्माण और निर्देशन भी किया। दुर्गा खोटे इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसिएशन .इप्टा. से जुडी रही । दुर्गा खोटे फिल्मों के साथ ही रंगमंच विशेषकर मराठी रंगमंच पर भी कई वर्षों तक सक्रिय रहीं । दुर्गा खोटे ने नायिका के बाद मां की भूमिकाएं भी कई फिल्मों में निभायीं। के. आसिफ की ..मुगले आजम..1960.. में रानी जोधाबाई के उनके किरदार को दर्शक आज तक नहीं भूल पाए हैं । इसके अलावा उन्होंने विजय भट्ट की क्लासिक फिल्म.. भरत मिलाप..1942.. में कैकेयी की भूमिका निभायी थी ।
दुर्गा खोटे ने मुम्बई मराठी साहित्य संघ के लिए कई नाटकों में काम किया । शेक्सपीयर के मशहूर नाटक मैकबेथ के वी. वी. शिरवाडकर द्वारा ..राजमुकुट.. नाम से किए गए मराठी रूपांतरण में उन्होंने लेडी मैकबेथ का
किरदार निभाया था. जो काफी चर्चित रहा था। दुर्गा खोटे ने अपने पांच दशक से भी अधिक लंबे कैरियर में
हिन्दी और मराठी की लगभग दो सौ फिल्मों में काम किया। इसके अलावा उन्होंने अपनी कंपनी फैक्ट फिल्म्स और फिर दुर्गा खोटे प्रोक्शंस के बैनर तले तीस साल से अधिक समय तक कई लघु फिल्मों. विज्ञापन फिल्मों. वृत्तचित्रों और धारावाहिकों का निर्माण भी किया । छोटे पर्दे के लिये उनका बनाया गया सीरियल .वागले की दुनिया.. दर्शकों में काफी लोकप्रिय हुआ था।
दुर्गा खोटे ने मराठी भाषा में ..मी दुर्गा खोटे.. नाम से मराठी भाषा में अपनी आत्मकथा भी लिखी. जो काफी चर्चित रही । बाद में ..आई दुर्गा खोटे.. नाम से इसका अंग्रेजी अनुवाद भी किया गया । वर्ष 1968 में दुर्गा खोटे को पदमश्री. से सम्मानित किया गया ।भारतीय सिनेमा में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें 1983 में सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया । । अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाली महान अभिनेत्री 22 सितम्बर 1991 को इस दुनिया को अलविदा कह गयी।
प्रेम जितेन्द्र
वार्ता
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