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वीरांगना नगरी झांसी से ही सबसे पहले उठी थी देश में एक मतदाता सूची की मांग

वीरांगना नगरी झांसी से ही सबसे पहले उठी थी देश में एक मतदाता सूची की मांग

झांसी 12 सितम्बर (वार्ता) देश में एक साथ चुनाव कराये जाने के लिए एक मतदाता सूची होने की संभावनाओं को तलाशने की जो पहल केंद्र सरकार ने हाल ही में शुरू की है उसकी मांग काफी समय पहले वीरांगना नगरी झांसी से सबसे पहले उठायी गयी थी।

इस मांग को लेकर देश के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत से 10 फरवरी 2018 में मुलाकात कर ज्ञापन सौंपने वाले उत्तर प्रदेश में झांसी महानगर की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ईकाई के तत्कालीन जिलाध्यक्ष प्रदीप सरावगी ने शनिवार को यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा कि लोकसभा और विधानसभा के लिए अलग मतदाता सूची और स्थानीय चुनावों के लिए अलग मतदाता सूची तैयार किया जाना धन और जन की बड़ी खपत वाली फिजूल प्रक्रिया है । अलग अलग मतदाता सूची होने से यह कभी अपडेट नहीं हो पाती और यह काम अनवरत चलता रहता है। उन्होंने देश में एक मतदाता सूची बनाने की संभावनाएं तलाशने के लिए केंद्र सरकार की पहल का स्वागत किया और इस ओर काम शुरू करने के लिए सरकार को धन्यवाद भी दिया।

उन्होंने बताया कि नयी मतदाता सूची के आधार पर हुए 2017 के विधान सभा चुनाव के बाद नगर निगम के चुनाव में दोबारा पांच साल पुरानी नगर निगम चुनाव की ही मतदाता सूची निकालकर उसका पुनरीक्षण शुरू होने हुआ। इसे देख उन्हें इस प्रक्रिया का औचित्य समझ नहीं आया। हाल ही में बनी मतदाता सूची को छोड दूसरी मतदाता सूची की जरूरत पर उन्होंने जिला निर्वाचन आयोग से सवाल किये लेकिन कोई प्रभावी उत्तर नहीं मिला। देश में दो मतदाता सूची की आवश्यकता के सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए उन्होंने अगस्त 2017 से ही राज्य निर्वाचन आयोग और कई चुनावी विशेषज्ञों से भी बात की लेकिन कोई कारण नही सामने आया।

काफी माथापच्ची और ढूंढने के बाद दो मतदाता सूची के औचित्य का जवाब यह मिला कि पहले लोकसभा, विधानसभा और अन्य चुनावों में मतदान की उम्र 21 वर्ष और 18 वर्ष हुआ करती थी तो उस समय अलग अलग मतदाता सूची होना जरूरी था लेकिन जब कानून बनाकर पूरे देश में मतदाता की उम्र 18 साल निश्चित कर दी गयी तो अलग अलग मतदाता सूची की प्रासंगिकता उसी समय समाप्त हो गयी थी । तत्कालीन सत्ताधारी दल ने विभिन्न राज्यों में अपने अपने राजनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए पूरे देश के लिए एक मतदाता सूची की बात पर विचार ही नहीं किया गया और विपक्षी दलों ने भी ऐसे ही राजनीतिक हितों के चलते इस बात को मजबूती से नहीं उठाया।

इस राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी का खामियाजा लंबे समय से देश की आम जनता बेवजह उठा रही है। दो बार मतदाता सूची बनाने में जनता की गाढ़ी कमाई तो बरबाद होती ही है लंबे समय तक सरकारी मशीनरी इसी काम में उलझी रहती है जिससे बाकी विकास कार्य बिना किसी कारण लटके रहते हैं। श्री सरावगी ने बताया कि इस प्रक्रिया से मात्र एक काम करके इससे पूरी तरह से निजात पायी जा सकता है और उसके बाद केवल मतदाता सूची को अपडेट करना होगा उसके पुनरीक्षण की कोई आवश्यकता ही नहीं रहेगी।

मतदान की सबसे छोटी ईकाई बूथ होती है। इस बूथ को अपरिवर्तनीय कर देना चाहिए। इसके बाद अगर अलग अलग चुनाव में परिसीमन बदलता भी है तो पूरे बूथ को उठाकर समायोजित कर दिया जाए नाकि बूथ की मतदाता सूची में से कुछ नामों को।इससे किसी चुनाव में मतदाता सूची में नाम होने और किसी में गायब हो जाने से मतदान से कोई भी पात्र व्यक्ति वंचित नहीं रहेगा। इस काम के लिए फिर से मतदाता सूची बनाने की भी जरूरत नहीं है जो भी पिछले लोकसभा चुनावों की मतदाता सूची हो उसी को स्थायी मानते हुए उसके पुनरीक्षण की जगह अपडेट करने का काम करना चाहिए और इसके लिए तहसील स्तर पर एक सेंटर बनाया जाना चाहिए। जहां नये नामों को जोड़ने, नाम काटने और ट्रांसफर करने की सुविधा हो। इस तरह मतदाता सूची अपने आप अपडेट हो जायेगी और बार बार होने वाले पुनरीक्षण् की खर्चीली प्रक्रिया से मुक्ति भी मिल जायेगी।

इसके अलावा हर मतदाता का एक क्रमांक होना चाहिए जो उसका आधार नंबर ही हो। ऐसा होने पर फर्जी मतदान तो रूकेगा ही साथ ही सभी मतदाता अपने मताधिकार का भी इस्तेमाल कर पायेंगे। अगर किसी मतदाता को एक जगह से दूसरी जगह नौकरी या दूसरे कारणों के चलते जाना भी पड़ता है तो वह नयी जगह पर भी अपने आधार नंबर या मतदाता क्रमांक से मतदान कर सकता है। आधार नंबर और मतदाता क्रमांक एक होने से हर बार चुनाव में मतदाता पहचान पत्र बनाने की जरूरत भी खत्म हो जायेगी और बार बार इस काम में होने वाले धन और सरकारी मशीनरी के बेवजह इस्तेमाल पर भी रोक लग जायेगी।

श्री सरावगी ने बताया कि इस प्रस्ताव को लेकर फरवरी 2018 में उन्होंने तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त से भी मुलाकात की थी और उन्होंने भी इसमें रूचि दिखायी थी लेकिन साथ ही यह भी कहा था कि विभिन्न राजनीतिक दल इसके लिए एकमत नहीं होंगे लेकिन अब केंद्र सरकार ने इस ओर प्रयास शुरू किये हैं ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि पूरे देश में एक मतदाता सूची का यह काम जल्द ही मूर्त रूप लेगा और लोगों को मतदान के दौरान होने वाली परेशानियों और देश को इस खर्चीली प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी।

सोनिया

वार्ता

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