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बीस साल पहले एनकाउंटर से बचा था विकास

बीस साल पहले एनकाउंटर से बचा था विकास

कानपुर 10 जुलाई (वार्ता) उत्तर प्रदेश में कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की दुस्साहसिक वारदात को अंजाम देने वाले दुर्दांत विकास दुबे का अंत आज हो गया लेकिन उसके आतंक के साम्राज्य को समाप्त करने में यूपी पुलिस को 20 साल लग गए हालांकि पुलिस चाहती तो 2001 में ही थाने में भाजपा नेता संतोष शुक्ला की हत्या करने वाले का काम तमाम उसी समय कर सकती थी।

वरिष्ठ पत्रकार शरद कुमार ने बताया कि अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर की पटकथा वर्ष 2000 में ही लिखी जाना शुरू कर दी गई थी और सन 2001 में इसे पूरा भी होना था लेकिन राजनैतिक सरपरस्ती और बिकरू गांव के लोगों ने विकास को उस समय बचा लिया था। थाने के भीतर दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री की हत्या के इल्जाम से सबूतों के अभाव में विकास साफ बच गया और इसके बाद उसके आतंक के साम्राज्य की जड़ें दिन पर दिन मजबूत होती गयी।

उन्होंने कहा कि विकास के आतंक को बढ़ावा देने में लगभग सभी राजनीतिक दलों ने हवा दी है। राजनीतिक पकड़ के चलते दिन प्रतिदिन अपराध की दुनिया में खड़ा होता चला गया बड़े-बड़े नेता भी इस पर हाथ रखने लगे जिसके चलते इसकी सनक इतनी बढ़ गई कि उसके मन से कानून और पुलिस का खौफ खत्म हो गया।

श्री कुमार ने बताया कि सन 2003 व 2005 बीच में एक मामले में कल्याणपुर पुलिस ने इसे गिरफ्तार कर लिया था और पुलिस इसके आतंक का अंत करने की तैयारी कर रही है। यह खबर आग की तरह शिवली चौबेपुर शिवराजपुर और आसपास के गांवों में फैल गई और देखते ही देखते सैकड़ों ग्रामीणों ने थाने के बाहर धरना दे दिया। जब तक पुलिस कोर्ट नहीं ले गई तब तक सारे ग्रामीण थाने के बाहर ही बैठे रहे।

इस घटनाक्रम के बाद इस के हौसले और बुलंद हो गए क्योंकि इसे ग्रामीणों का साथ मिलना भी अच्छे से शुरु हो गया था लेकिन यह मैसेज राजनीतिक गलियारे तक पहुंच गया और फिर क्या था चाहे विधानसभा चुनाव हो या फिर लोकसभा हर चुनाव में राजनीतिक पार्टियों में उसकी पूछ होने लगी। देखते ही देखते अपराधी विकास दुबे अपराध की दुनिया में बड़ा नाम बन गया। स्थितियां यह बन गई की पुलिस भी इतनी मजबूर थे कि जल्दी जल्दी इस पर हाथ डालने से पहले हजार बार सोचती थी।

वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि अपराध की दुनिया में इसका बड़ा नाम करने में अकेले इसी का हाथ नहीं है। सैकड़ों खादी और खाकी के लोग भी इसके जिम्मेदार हैं। आतंक का पर्याय बना विकास दुबे तो परलोक सुधार गया लेकिन लाख टके का सवाल है कि क्या उन लोगों तक जांच की आंच पहुंचेगी जिन्होंने इसे पल पल संरक्षण दिया और बढ़ते समय में बड़ा अपराधी बना दिया।

सं प्रदीप

वार्ता

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