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कोरोना के कारण रक्षाबंधन पर नहीं लगेगा कुमाऊं का ऐतिहासिक बग्वाल मेला

नैनीताल 10 जुलाई (वार्ता) उत्तराखंड में देवीधुरा के नाम से विख्यात कुमाऊं का ऐतिहासिक बग्वाल मेला कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी के कारण इस बार स्थगित कर दिया गया है। बग्वाल के मौके पर बग्वाल वीरों की ओर से मां बाराही की पूजा अर्चना ही की जायेगी।
चंपावत के जिला प्रशासन एवं मां बाराही मेला कमेटी की गुरुवार को संपन्न बैठक में यह निर्णय लिया गया। तय किया गया कि अगले वर्ष मेले को अधिक भव्यता प्रदान की जायेगी। इस वर्ष मंदिर में मां बाराही की पूजा अर्चना के अलावा अन्य गतिविधियां स्थगित रहेंगी। यह जानकारी मां बाराही मेला कमेटी के अध्यक्ष खीम सिंह लमगड़िया ने दी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष बग्वाल के अवसर रक्त दान देने का कार्यक्रम आयोजित किया जायेगा।
श्री लमगड़िया ने बताया कि चंपावत के जिला प्रशासन के साथ मेला कमेटी एवं चारों खामों के अध्यक्षों की कल बैठक सम्पन्न हुई। बैठक में जिला प्रशासन की ओर से वैश्विक महामारी कोविड-19 का हवाला दिया गया। इसके बाद चारों खामों के मुखियाओं एवं मेला कमेटी की ओर से तय किया गया कि जिला प्रशासन के निर्देशों का पालन किया जायेगा और इस वर्ष रक्षाबंधन के मौके पर मां बाराही धाम (देवीधुरा) में लगने वाला मेला एवं अन्य कार्यक्रम स्थगित रहेंगे। उन्होंने कहा कि सादगी से सिर्फ मां की पूजा अर्चना की जायेगी।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन के सामने मेला कमेटी की ओर से सांकेतिक रूप से सूक्ष्म बग्वाल का अनुरोध किया गया लेकिन उन्होंने बताया कि प्रशासन ने इसमें असमर्थता जाहिर की। उन्होंने कहा कि जल्द ही मां बाराही मेला कमेटी, चारों खामों के मुखियाओं की अगुवाई में बग्वाली वीरों की एक बैठक आयोजित की जायेगी और इस निर्णय पर अंतिम मुहर लग जायेगी। उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी के चलते पूरा देश पीड़ित है और जनहित को देखते हुए ऐसा निर्णय लिया जा रहा है।
बाराही धाम में कल सम्पन्न बैठक में चंपावत के जिलाधिकारी एसएन पांडे, पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह, जिला पंचायत के अध्यक्ष, मंदिर कमेटी के पदाधिकारी, पीठाचार्य कीर्तिवल्लभ जोशी, चारों खाम (लमगड़िया, गहरवाल, चमियाल व बालिग खाम) के मुखिया शामिल थे।
उल्लेखनीय है कि रक्षाबंधन के मौके पर जब पूरा देश भाई बहिन का त्योहार मनाता है तब उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल का एक हिस्से की हजारों जनता बग्वाल खेलने में मस्त रहती है। परंपरगत तरीके से चार खामों के वीरों के बीच बग्वाल खेली जाती है। चारों खाम दो दो की संख्या में पक्ष एवं प्रतिपक्ष में बंटे होते हैं और दोनों ओर से पत्थर फेंके जाते हैं। तब तक बग्वाल खेली जाती है जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाये। मंदिर के पुजारी की ओर से बग्वाल रोकने के संकेत के बाद ही बग्वाल रोकी जाती है। बग्वाली वीरों को इस दौरान पवित्रता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
माना जाता है कि चारों खामों के लोग अपनी आराध्य देवी मां बाराही को मनाने के लिये पुरातन काल से ही बग्वाल का आयोजन करते आ रहे हैं। इस मौके पर देश के अन्य राज्यों से भी हजारों लोग देवीधुरा पहुंचते हैं और ऐतिहासिक खोलीखाण मंदिर में बग्वाल के साक्षी बनते हैं। इस अवसर पर एक सप्ताह पहले से सांस्कृतिक एवं खेल की गतिविधियां शुरू हो जाती है। देवीधुरा में भव्य मेला भी लगता है। कुछ वर्षों से पत्थरों के बजाय फूलों एवं फलों से बग्वाल की शुरूआत की जाती है। इस वर्ष तीन अगस्त रक्षाबंधन कोे बग्वाल का आयोजन किया जाना था।
रवीन्द्र, उप्रेती
वार्ता
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