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निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय ने किया निरस्त

प्रयागराज 28 मई (वार्ता) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आपसी झगड़े में हुई मौत के मामले में हत्या के आरोप में सत्र न्यायालय द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर दिया है।
न्यायालय ने झगड़े में मौत, हत्या नही, मानव वध करार देते हुए 11 साल 11 माह तक जेल में बिताये समय को सजा के लिए पर्याप्त माना है। न्यायालय ने आरोपी की आजीवन कारावास की सजा को रद्द कर तत्काल रिहाई का आदेश दिया है। न्यायालय ने कहा है कि आरोपी रिहा होने के तीन माह के भीतर 50 हजार रूपये बतौर मुआवजा कोर्ट में जमा करे । जिसे मृतक के माता-पिता को दिया जाय।
न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की खंडपीठ ने अलीगढ़ के श्रवण की अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह फैसला दिया है।
गौरतलब है कि श्रीमती रानी ने सात मार्च 2008 को प्राथमिकी दर्ज करायी। जिसमे आरोप लगाया कि उसका बेटा संतोष छह मार्च को रात साढे दस बजे बिजली की मरम्मत कर रहा था। आरोपी की दीवाल पर होने के कारण राजू से उसका झगडा हुआ। राजू ने संतोष को पकड लिया और श्रवण ने चाकू से हमला किया। शिकायतकर्ता मां, उसके पति एवं देवर के पहुंचने पर हत्यारे भाग गये। अस्पताल में डाक्टर ने संतोष को मृत घोषित कर दिया।
पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की और अपर सत्र न्यायाधीश अलीगढ़ ने हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनायी। जिसे अपील मे चुनौती दी गयी थी।
कोर्ट ने कहा कि घटना के चश्मदीद गवाह हैं। पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे मौत का कारण हैमरेज एवं शाक बताया गया है। यह साक्ष्य नही है कि हत्या की योजना थी। अचानक झगडा हुआ और जिसके चलते मौत हो गयी। इसे हत्या नही कहा जा सकता है। आरोपी मानव वध का दोषी है। कोर्ट ने काटी सजा को पर्याप्त माना और मुआवजा देने का आदेश देते हुए रिहा करने का निर्देश दिया है।
सं दिनेश प्रदीप
वार्ता
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