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सिनेमा जगत के पितामह थे व्ही शांताराम

(पुण्यतिथि 30 अक्तूबर के अवसर पर )
मुंबई 29 अक्तूबर (वार्ता)सिनेमा जगत के पितामह व्ही शांताराम को एक ऐसे फिल्मकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने सामाजिक और पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अर्थपूर्ण फिल्में बनाकर लगभग छह दशक तक सिने दर्शकों के दिलों में अपनी खास पहचान बनायी ।
व्ही शांताराम:मूल नाम राजाराम वानकुदरे शांतारामः का जन्म 18 नवंबर 1901 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ थ।आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। व्ही शांताराम का रूझान बचपन से ही फिल्मों की ओर था और फिल्मकार बनना चाहते थे। उन्होंने कैरियर के शुरूआती दौर में हालांकि गंधर्व नाटक मंडली में उन्होंने पर्दा उठाने का भी काम किया। वर्ष 1920 में व्ही शांताराम बाबू राव पेंटर की महाराष्ट्र फिल्म कंपनी से जुड़ गये और उनसे फिल्म निर्माण की बारीकियां सीखने लगे। शांताराम ने अपने कैरियर की शुरूआत वर्ष 1921 में प्रदर्शित मूक फिल्म ‘सुरेख हरण’ से की। इस फिल्म में उन्हें बतौर अभिनेता काम करने का अवसर मिला ।
इस बीच व्ही शांताराम की मुलाकात भी.जी दामले ,एस कुलकर्णी, एस फतेलाल और के.आर धाइबर से हुयी जिनकी सहायता से उन्होंने वर्ष 1929 में प्रभात कपंनी फिल्मस की स्थापना की। प्रभात कंपनी के बैनर तले व्ही शांतराम ने गोपाल कृष्णा,खूनी खंजर,रानी साहिबा और उदयकाल जैसी फिल्में निर्देशित करने का मौका मिला। वर्ष 1932 में प्रदर्शित फिल्म ‘अयोध्यचे राजा’ व्ही शांताराम के सिने कैरियर की पहली बोलती फिल्म थी। वर्ष 1933 में प्रदर्शित फिल्म ‘सैरंधी’ को व्ही शांतारम रंगीन बनाना चाहते थे। इसके लिये उन्होंने जर्मनी का दौरा किया और वहां के लैब अगफा लैबोरेटरी में फिल्म को प्रोसेसिंग के लिए भेजा लेकिन तकनीक कारणों से फिल्म पूरी तरह रंगीन नहीं बन सकी ।
प्रेम आशा
जारी वार्ता
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