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छत्तीसगढ़ में ग्रामीण संस्कृति का फ्रेंडशिप डे है भोजली

बिलासपुर 16 अगस्त (वार्ता) छत्तीसगढ़ की गांव-गंवई संस्कृति के “फ्रेंडशिप डे” के रूप लोकप्रिय “भोजली” शुक्रवार को समूचे राज्य के ग्रामीण अंचलों और शहरों में पुराने इलाकों में धूमधाम से मनाया गया।
सावन का महीना शुरू होने के साथ ही लड़कियां एवं नवविवाहिताएं अच्छी बारिश एवं अच्छे फसल की कामना करते हुए प्रतीकात्मक रूप में भोजली का आयोजन करती हैं। भोजली एक टोकरी में भरे मिट्टी में धान, गेहूँ, जौं के दानों को बो कर तैयार किया जाता है। उसे घर के छायादार जगह में स्थापित किया जाता है। उसमें हल्दी पानी डाला जाता है। बाये गये अनाज के पाैंधे धीरे-धीरे बढ़ते हैं, महिलायें उसकी पूजा करती हैं एवं भोजली के सम्मान में भोजली गीत गाये जाते हैं । सामूहिक स्वर में गाये जाने वाले भोजली गीत छत्तीसगढ़ की पहचान हैं।
सावन के शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन बोए जाने वाली भोजली को रक्षाबंधन के दूसरे दिन भादो की प्रथमा को विसर्जित किए जाते हैं।
भोजली में विसर्जन के बाद बचाए गए पौधों को एक-दूसरे को देकर मितान बनाने की परंपरा का भी निर्वहन किया जाता है। एक दूसरे के कान में भोजली के पौधे रखकर दोस्ती को अटूट बनाने की कसम ली जाती है।
एक तरह से यह आंचलिक और ग्रामीण संस्कृति में आधुनिक और वैश्विक युग के फ्रेंडशिप डे की तरह है। भोजली हमेशा के लिए दोस्ती को निभाने का बंधन भी है, हालांकि मौजूदा दौर में यह बंधन भी परस्पर व्यवहार और समय की कसौटी पर कसा जाने लगा है।
टंडन, उप्रेती
वार्ता
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