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बहुसंख्यकों का सांप्रदायिकीकरण देशहित में नहीं - दिग्विजय सिंह

इंदौर, 02 अक्टूबर (वार्ता) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने आज कहा कि बहुसंख्यकों का सांप्रदायिकीकरण देशहित में नहीं है।
श्री सिंह ने यहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित किया। इस अवसर पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता महेश जोशी, राज्य के गृह मंत्री बाला बच्चन और अन्य गांधीवादी भी मौजूद थे।
पूर्व मुख्यमंत्री श्री सिंह ने कहा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपने भाषणों में 'इस्लामिक फोबिया' और 'मुस्लिम कट्टरवाद' की बात कर रहे हैं। इसी तरह हमारे यहां 'हिंदुओं के कट्टरवाद' की बात की जा रही है। और हिंदुओं का कट्टरवाद भी उतना ही खतरनाक है, जितना कि मुस्लिमों का कट्टरवाद।
श्री सिंह ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू कहा करते थे कि 'अल्पसंख्यकों के सांप्रदायिकीकरण' से ज्यादा खतरनाक 'बहुसंख्यकों का सांप्रदायिकीकरण' है। और आज जो हालात आप पाकिस्तान में देख रहे हैं, जहां बहुसंख्यकों का सांप्रदायिकीकरण हुआ है, वही हालात (बहुसंख्यकों का सांप्रदायिकीकरण) अगर भारत में होंगे, तो इससे देश को बचाना आसान नहीं होगा।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता श्री सिंह ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर परोक्ष रुप से निशाना साधते हुए कहा कि जिस विचारधारा ने महात्मा गांधी की हत्या की, वह अपने कार्यकर्ताओं को संदेश दे रही है कि एक माह तक ग्राम पंचायत में पदयात्रा करें। उन्होंने कहा 'मैं उनसे यह पूछना चाहता हूं कि आखिर आप वहां कहेंगे क्या। गांधी को किस रूप में जनता के सामने रखेंगे। यह आप हमें बता दीजिए।
उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि जिन ग्राम पंचायतों में आप पदयात्रा करने जा रहे हैं, वहां कौन सा दर्शन आप जनता के सामने रखेंगे। गांधी दर्शन या गोडसे दर्शन या गोलवलकर दर्शन, यह बता दीजिए।
गौरतलब है कि गांधी जयंती के उपलक्ष्य में बुधवार से भाजपा की ओर से पूरे देश में 150 किलोमीटर लंबी पदयात्राएं प्रारंभ की गयी हैं।
श्री सिंह ने इसके साथ ही कांग्रेस नेताओं को हिदायत देते हुये कहा कि कांग्रेसियों की यह आदत है कि वे किसी से बहस नहीं करते। उन्हें बहस करना चाहिए। अपनी बात रखनी चाहिए। हमें पता है कि सामने वाला चर्चा के दौरान उन्हें अपशब्द कहेगा, क्योंकि उनके पास तर्क नहीं है। लेकिन हमें अपनी बात रखनी चाहिए, विरोध सहने की हममें क्षमता होनी चाहिए।
सं प्रशांत
वार्ता
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