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बुद्ध और महावीर का चिंतन त्याग का चिंतन था-सिंह

रायसेन, 27 नवंबर (वार्ता) मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में स्थित सांची बौद्ध भारतीय ज्ञान अध्ययन विश्वविद्यालय में
‘बौद्ध दर्शन के प्रारंभिक काल का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अध्ययन’ पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य अतिथि प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह ने कहा कि बुद्ध और महावीर का चिंतन त्याग का चिंतन था।
श्री सिंह ने कहा कि जड़ हो चुके विचारों को भारतीय समाज ने कभी भी स्वीकार नहीं किया। उन्होंने कहा कि बुद्ध काल से ही भारतीय समाज निरंतर अत्याचार का विरोधी रहा है और महात्मा बुद्ध भारत के पहले सांस्कृतिक विद्रोही हैं जिन्होंने वर्ण व्यवस्था का विरोध करते हुए यज्ञ को हिंसा प्रधान बताया था। उन्होंने कहा कि अगर कोई चिंतन समाज को उठाने में कारगर नहीं हो पा रहा है तो वह चिंतन बेकार है।
इस राष्ट्रीय कॉन्फ्रेस के दूसरे एवं अंतिम दिन बुद्धिजीवियों ने केंद्रीय विषय से जुड़े विभिन्न विषयों पर अपने-अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
आंध्र प्रदेश के सांस्कृतिक केंद्र के सी.ई.ओ डॉ. ई शिवानागी रेड्डी ने आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में बौद्ध धर्म के प्रभाव पर बताया कि सैकड़ों ऐसे स्थल हैं जहां पर बौद्ध मठ, स्तूप और मंदिर स्थापित थे।
दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज के सहप्राध्यापक डॉ माया जोशी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में जन्मे राहुल सांकृत्यायन 36 भाषाओं के ज्ञाता थे। वेद, ईश्वर और आर्य समाज से मोह भंग हो जाने के बाद वे बौद्ध दर्शन के अध्ययन में लग गए थे। वे पाली पढ़ने श्रीलंका गए, 4 बार तिब्बत की यात्रा की, विश्वविद्यालय में बौद्ध दर्शन पढ़ाने के लिए 2 साल रूस में रहे, ईरान की यात्रा की।
भारतीय पुरातात्विक विभाग के पूर्व सह-निदेशक डॉ. टी दयालम ने बताया कि देश की 1300 से अधिक ऐसे स्थलों का डिजीटलीकरण किया जा चुका है।
सं नाग
वार्ता
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