बाड़मेर, जनवरी 25 जनवरी (वार्ता) राजस्थान में थार के लोकगीत, संगीत को देश विदेशों में नए आयाम देने वाले उस्ताद अनवर खान बहिया को पद्मश्री अवार्ड मिलने पर थार जिले में खुशी की लहर छा गई।
अनवर क्षेत्र के जाने माने लोक गायक हैं। थार के लोकगीत संगीत को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने में अनवर खान बहिया की गायकी का अहम योगदान हैं। जैसलमेर जिले के छोटे से गांव बहिया में लोक गायक रोजड़ खान के घर जन्मे अनवर के दादा भी लोक गायक थे। लोकगीत संगीत अनवर खान को विरासत में मिली। अनवर खान ने बाड़मेर को अपना ठिकाना बना लिया। अनवर लोकगीत संगीत के साधक हैं। चान्दण मुल्तान, सदीक खान जैसे उस्तादों से अनवर खान ने लोक गीत संगीत की बारीकियां सीखीं।
सम्पूर्ण भारत के साथ साथ लगभग 55 देशों में अपनी गायकी का परचम लहरा चुके अनवर खान विख्यात संगीतकार ए.आर. रहमान की फिल्मों में भी गा चुके हैं, साथ ही कई हिन्दी फिल्मों में अपनी लोक गायकी का जलवा बिखेर चुके हैं। लोक गायकी के अलावा अनवर खान बेहतरीन सूफी गायक हैं। जब अनवर सुफी शैली में लोकगीत गाते हैं, तो श्रोता झूम उठते हैं। उनका मानना है कि शास्त्रीय संगीत की आत्मा लोकगीतों में बसती हैं। वह रागों में विश्वास नहीं रखते। वह कहते हैं कि राग गीतों में होता हैं। लोकगीत प्रकृति की देन हैं, हम प्रकृति का भरपूर आनन्द उठाते हैं। फिल्मी दुनिया में जाने के अनवर खिलाफ हैं। इस बारे में उनका कहना है कि हम फिल्मों में चले गए तो लोक गीत संगीत की इस परम्परा को जिन्दा कौन रखेगा।
मारवाड़ी, राजस्थानी, हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, सिन्धी भाषाओं में गाने वाले अनवर खान लोकगीत संगीत को नई उॅंचाईयों पर पहुंचाना चाहते हैं। अनवर खान की गायिकी का लोहा गजल गायक जगजीत सिंह भी मानते हैं। जगजीत सिंह की एलबम ‘पधारों म्हारे देश’ में मुख्य गीत का मुखडा उन्होंने ही गाया है। अनवर राजस्थानी तथा सूफी गायिकी की मिसाल हैं।
भाटी सुनील
वार्ता