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राष्ट्रहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठकर सर्वसम्मति बने :वैंकया

राष्ट्रहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठकर सर्वसम्मति बने :वैंकया

चंडीगढ़ ,14 अगस्त (वार्ता) उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडु ने जनप्रतिनिधियों को सुझाव दिया है कि राष्ट्रहित तथा समाज के आदर्शों का कोई विकल्प नहीं होता ,इसलिये राष्ट्रहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठकर सर्वसम्मति बनाने में किसी को परहेज नहीं करना चाहिये ।

श्री नायडु आज यहां स्वर्गीय बलरामजी दास टंडन की पहली पुण्यतिथि पर पंजाब विश्वविद्यालय में आयोजित बलरामजी दास टंडन मेमोरियल लेक्चर में व्याख्यान दे रहे थे । उन्होंने कहा कि लोकतंत्र के लिये आवश्यक है कि जनप्रतिनिधि लोकतांत्रिक आदर्शों और संस्थाओं में जनता की आस्था को बनाये रखें। हालांकि लोकतंत्र में दलीय राजनीति स्वाभाविक है लेकिन राष्ट्रहित और समाज के आदर्शों का कोई विकल्प नहीं होता और राष्ट्रहित के मुद्दों पर दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सर्वसम्मति होनी चाहिए।

उन्होंने इस संदर्भ में धारा 370 को निरस्त किए जाने का उल्लेख करते हुये कहा कि धारा 370 केवल एक अस्थाई प्रावधान था। उन्होंने संसद में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के हिन्दू अखबार में प्रकाशित वक्तव्य का उल्लेख करते हुए बताया कि 27 नवंबर 1963 को धारा 370 को निरस्त करने के मुद्दे पर पंडित नेहरू ने कहा था कि धारा 370 महज एक अस्थाई प्रावधान है। वह संविधान का स्थाई भाग नहीं है।

इस अवसर पर श्री नायडू ने उस समय के राष्ट्रीय समाचार पत्रों में धारा 370 विषय पर छपी विपक्ष के बड़े नेताओं के बयानों संबंधी खबरों को स्वयं पढ़ा। उन्होंने कहा कि धारा 370 के निरस्त होने का देश भर में स्वागत हुआ है। उन्होंने कहा ये मसला देश की एकता, अखंडता और सुरक्षा का है लेकिन पश्चिमी मीडिया का एक वर्ग इस विषय में भारत विरोध भ्रामक प्रचार फैला रहा है। इस मामले पर लोगों के भ्रम को दूर करना चाहिये ।

उपराष्ट्रपति ने जनप्रतिनिधियों को नसीहत दी कि आज हम बढ़ती आकांक्षाओं और रोज बदलती संभावनाओं के युग में रह रहे हैं। ऐसे में उनसे जनअपेक्षाएं भी बढ़ी हैं लेकिन क्या हम उन आकांक्षाओं के साथ न्याय कर पा रहे या खरे उतर रहे हैं । उन्होंने संसद तथा विधानसभाओं के कामकाज में व्यवधान की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता जताते हुए कहा कि विधानसभायें असहमति या शोरराबे ,व्यवधान का माध्यम न होकर विचार-विमर्श और सहमति का माध्यम हैं । ऐसे में जनप्रतिनिधियों का दायित्व है कि वे लोकतांत्रिक मर्यादाओं और आस्थाओं को मजबूत करें।

श्री नायडु ने कहा कि मैं सदैव एक तत्पर और सक्षम प्रशासन, न्यायिक सुधारों और सांसद एवं विधाई निकायों सार्थक सकारात्मक बहस का आग्रह करता रहा हूं। बहस ,चर्चा ,निर्णय ,विकेन्द्रीकरण और डिलीवर ही भावी प्रगति का मार्ग है। सिर्फ विधायिका ,कार्यपालिका ,प्रशासन और न्यायपालिका की जन आकांक्षाओं के प्रति जवाबदेही आवश्यक है । न्यायिक प्रणाली और प्रक्रिया को भी जनसाधारण के लिए सुलभ तथा सुगम होना चाहिए। कानून को लागू कराने वाली संस्थाएं और न्याय प्रदान करने वाले अधिष्ठान लोगों के लिए सुगम, विश्वसनीय, पारदर्शी और सामान रूप से न्यायपूर्ण होने चाहिए।

त्वरित न्याय की आवश्यकता पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि सालों से लंबित मुकदमों को कम करने के कारगर प्रयास किए जाए ताकि न्याय में देरी न हो ।

श्री नायडु ने कहा कि लोकनीति में आचरण विचारधारा से अधिक महत्वपूर्ण है। चुनाव याचिका या जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध आपराधिक मामलों में समयबद्ध और शीघ्रता से फैसला होना चाहिए। देखा गया है कि ऐसे मामले या दल बदल कानून के तहत मुकद्दमे, जनप्रतिनिधि का कार्यकाल समाप्त होने तक भी लंबित रहते है। इससे इन कानूनों का उद्देश्य ही निरर्थक हो जाता है।

दल बदल कानून के प्रावधानों को संबंधित पीठासीन सभापति/अध्यक्ष द्वारा लागू करने में देरी पर चिंता व्यक्त करते हुए श्री नायडू ने कहा कि दल बदलने वाले जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध जल्द निर्णय लिया जाना चाहिए। देखा गया है कि दल बदल कानून का अक्षरशः पालन नहीं हो रहा है। ऐसे मामलों में देरी से न्यायिक और विधाई संस्थानों से जनता का विश्वास खत्म होता है। उन्होंने सलाह दी कि ऐसे मामलों की सुनवाई विशेष न्यायिक प्राधिकरण द्वारा हो और फैसला भी समयबद्ध एक वर्ष के अंदर ही हो।

इसी संदर्भ में देश की न्यायिक व्यवस्था का उल्लेख करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें न्यायिक प्रणाली को जनता के लिए सुगम सुलभ बनाना होगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच का विस्तार करके तथा अलग क्षेत्रों के लिए सुप्रीम कोर्ट की अलग पीठ स्थापित किया जाना चाहिए। समय आ गया है कि इतने विशाल देश में न्याय को जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए उच्चतम न्यायालय की अनेक पीठ स्थापित की जाएं।

उन्होंने स्वर्गीय टंडन के बारे में कहा कि अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में उन्होंने नि:स्वार्थ राष्ट्र सेवा, निष्ठापूर्ण समाज सेवा के प्रमाणिक मानदंड स्थापित किये जो जनप्रतिनिधियों और सामाजिक, राजनेताओं तथा कार्यकर्ताओं की वर्तमान पीढ़ी के लिये उतने ही अनुकरणीय हैं।

श्री नायडु ने कहा कि जनता हमसे अपेक्षा करती है कि हम उन मानदंडों का अनुसरण करें जो टंडन जी जैसे विभूतियों ने सार्वजनिक जीवन में स्थापित किये। उन्होंने आग्रह किया कि राजनीतिक दल अपने नेताओं और विधायकों के लिये आचार संहिता बनायें और उन्हें अपने घोषणापत्र में शामिल करें जिससे राष्ट्रीय जीवन में हम वह आदर्श पुन: स्थापित कर सकें जिसे टंडन जी जैसे समाजसेवी नेताओं ने स्थापित किया। चुनाव अब धर्म,जाति ,साम दाम दंड भेद के आधार पर न लड़ा जाये तथा चरित्र तथा विकास के नाम पर चुनाव लड़ा जाना चाहिये ।

उपराष्ट्रपति ने स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर देश को जातीय, लैंगिक भेदभाव, गरीबी और अशिक्षा से मुक्त करने के लिए साझा प्रयास करने का संकल्प लें।

इस अवसर पर पंजाब के राज्यपाल वी.पी. सिंह बदनोर, केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश, पंजाब के शिक्षा मंत्री विजय इंदर सिंगला तथा पंजाब विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजकुमार सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित थे ।

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