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हिमाचल में नई जनजातीय संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के पुनर्गठन का प्रस्ताव विचाराधीन नहींः डाॅ नंद कुमार साईं

शिमला, 11 अक्टूबर (वार्ता) राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) के अध्यक्ष डाॅ. नंद कुमार साईं ने कहा है कि लेह-लद्दाख आदिवासी परिषद और अन्य उत्तरी पूर्वी राज्यों की तरह हिमाचल में नई जनजातीय संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के पुनगर्ठन का अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं है।
डाॅ साईं ने शुक्रवार को यहां पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कहा कि हिमाचल में पांगी, भरमौर, लाहौल-स्पीति, किन्नौर और अन्य पिछड़े क्षेत्रों में आते है। उन्होंने कहा कि भौगोलिक रूप से हिमाचल सबसे बड़ा आदिवासी भौगोलिक क्षेत्र है लेकिन वर्तमान में जनजातीय संसदीय निर्वाचन क्षेत्र के पुनर्गठन का कोई प्रस्ताव इसके विचाराधीन नहीं है। प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लोगों की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति देश के बाकी राज्यों की अपेक्षा अच्छी है।
डा0 सांई ने कहा कि की प्रदेश की सरकार द्वारा जनजाति क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। प्रदेश में काफी संख्या में जनजातिय क्षेत्र के लोग सरकारी सेवाओं में काम कर रहे हैं जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति काफी अच्छी है और लोगों की प्रदेश में खेती-बाड़ी भी अच्छी है।
डाॅ0साईं ने कहा कि यहां जनजातीय लोगों पर होने वाले अत्याचार के मामले और इन क्षेत्रों में शिक्षा अधूरी छोड़ने वालों की संख्या लगभग शून्य है। पूरे प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम को सफलतापूर्वक लागू किया गया है।
उन्होंने कहा कि आयोग प्रदेश की समीक्षा के लिए आया है तथा शीघ्र ही जिला स्तर की समीक्षा के लिए भी आएगा। भौगोलिक स्थिति को देखते हुए अभी जनजातीय जिलों में जाने का मौका नहीं मिला लेकिन आयोग गांव में जाकर समीक्षा करेगा और प्रदेश सरकार द्वारा दी गई रिपोर्ट को केंद्र सरकार के समक्ष रखी जाएगी इसके अलावा राष्ट्रपति को भी स्थिति से अवगत करवाया जाएगा।
इस दौरे के दौरान आज प्रदेश सचिवालय में विभिन्न विभागों के अधिकारिओ और मुख्य सचिव के साथ इस संबंध में एक बैठक का आयोजन किया गया था। इसमें प्रदेश में अनुसूचित जनजाति के लोगो की आर्थिक, शैक्षणिक और चिकित्सा से जुड़ी स्थिति का जायजा लिया गया।
डाॅ. नंद कुमार साई ने प्रदेश सरकार से रासायनिक खादों एवं कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाकर फसल उत्पादन के लिए पारम्परिक प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने हिमालय में पाए जाने वाले दुर्लभ औषधीय पौधों तथा जड़ीबूटियां की पहचान के लिए सर्वे करवाने का भी सुझाव दिया ताकि इसके संरक्षण की दिशा में कार्य किया जा सके।
उन्होंने कहा कि इन दुर्लभ औषधीय पौधे व जड़ीबूटियों का संरक्षण व संवर्धन किया जाना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी को भी इसके बारे में पूर्ण ज्ञान व जानकारी प्रदान की जा सके। ये दुर्लभ जड़ी-बूटियां कई गम्भीर बीमारियों के उपचार में काम आती हैं।
इस अवसर पर मुख्य सचिव डाॅ. श्रीकांत बाल्दी ने आयोग को अवगत करवाया कि प्रदेश के जनजातीय क्षेत्रों के लोग समृद्ध है तथा इन क्षेत्रों में हर वर्ग का समान विकास हो रहा है। किन्नौर जिला का सेब तथा चिलगोजा, लाहौल का आलू तथा मटर पूरे देश में निर्यात किया जा रहा और यह सब प्रदेश सरकार के सड़कों के विकास के कारण सम्भव हो पाया है।
सं शर्मा
वार्ता
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