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गुरू गोविंद सिंह का प्रकाश पर्व हिमाचल में धूमधाम से मनाया

शिमला, 20 जनवरी (वार्ता) सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का 354वां प्रकाश पर्व हिमाचल प्रदेश भर में उमंग उत्साह से मनाया गया ।
इस अवसर पर आज तड़के से श्रद्धालु पवित्र सरोवरों तथा नदियों में स्नान करके गुरुद्वारों में कीर्तन और गुरुवाणी का पाठ सुना । सिख समुदाय के लोगों ने सुबह प्रभातफेरी निकाली और लंगर का आयोजन किया गया। शिमला बस स्टैंड गुरुसिंघ सभा गुरूद्वारा में भी गुरु पर्व पर कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किए गए। शहरी विकास मंत्री सुरेश भारद्वाज ने गुरुपर्व पर गुरुद्वारा में माथा टेका और सबको गुरु पर्व की बधाई दी।
उन्होंने बताया कि गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म बिहार की राजधानी पटना में हुआ था। उनका जीवन परोपकार और त्याग का जीता जागता उदाहरण है। गुरु गोविंद ने अपने अनुयायियों को मानवता को शांति, प्रेम, करुणा, एकता और समानता की पढ़ाई। आज उनके बताए मार्ग पर चलने की जरूरत है। गुरु गोविंद सिंह ने साल 1699 में बैसाखी के दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी। उनका जीवन अन्याय, अधर्म, अत्याचार और दमन के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए गुजरा।
गुरू गोविंद सिंह जी का हिमाचल से गहरा नाता रहा है। नाहन आनन्दपुर से पूर्व दक्षिण की ओर लगभग 100 कोस की दूरी पर स्थिति है। यहां पर उन दिनों मेदिनी प्रकाश नाम का राजा राज्य करता था। सिरमौर की पूर्वी सीमा पर यमुना नदी बहती है। यमुना के उस पार गढ़वाल रियासत है, जहां पर फतेहशाह नामक राजा का राज्य था। दोनों राजाओं में सीमा विवाद था। फतेहशाह ने मेदिनी प्रकाश के कुछ भू-भाग पर अवैध कब्जा कर रखा था।
जब इसकी पुत्री की सगाई कहलूर के राजा भीमचंद के पुत्र के साथ हुई तो इसको अपना सैन्य पक्ष भारी महसूस हुआ। यह मेदिनी प्रकाश को आंखे दिखाने लगा। मेदिनी प्रकाश को जब इस बात का पता चला तो वह गुरू गोविंद सिंह जी की सहायता लेने के लिए आनन्दपुर पहुंचा। वहां उसको पता चला कि गुरूदेव आपसी झगड़ों का विरोध करते हैं और मतभेदों को सम्मानजनक ढंग से सुलझाने में विश्वास रखते हैं।
इस कारण उसने गुरूजी से प्रार्थना की कि वे उनके नाहन नगर पधारें वहां रमणीक स्थल है वहां आपको हर प्रकार की सुविधा मिलेगी। अपनी माता के परामर्श के बाद उनके आदेश मानकर गोविंद सिंह जी नाहन आ गये। नाहन में गुरूजी का भव्य स्वागत किया गया मेदिनी प्रकाश ने उनको अनेक रमणीक स्थल दिखलाये। यह स्थान सामरिक महत्व का था इस कारण गुरूजी ने यहां अपना पांव टिका दिया। जिस कारण इस स्थान का नाम पांवटा पड़ गया। अक्तूबर 1684 में उन्होंने यहां पर नगर निर्माण का आदेश दिया।
सं शर्मा
वार्ता
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