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राजस्थान में गिरते भूजल स्तर से जल संरक्षण विशेषज्ञ चिन्तित

जयपुर, 29 जनवरी (वार्ता) राजस्थान में भूजल के गिरते जल स्तर और गुणवत्ता पर जल संरक्षण विशेेषज्ञों ने चिंता जताते हुए शीघ्र उपाय करने पर बल दिया है।
इसके स्थायी समाधान के लिये जलग्रहण विकास एवं मृदा संरक्षण आयुक्तालय, विन्सटन सिडनी यूनिवर्सिटी एवं मालवीय राष्ट्रीय प्रोद्योगिकी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में यहां आयोजित ‘ग्राउन्ड वॉटर मॉनिटरिगं, प्लानिगं, रिचार्ज एण्ड सस्टेनेबल यूजः विपेज लेवल पार्टिसिपेटरी अप्रोचेज एण्ड टूल्स’ विषय पर जल संरक्षण से जुड़े विशेषज्ञों की बुधवार को एमएनआईटी संस्थान में कार्यशाला आयोजित की गई ।
कार्यशाला में भूजल संरक्षण, वर्षा जल संरक्षण व भूजल की जानकारी से जुड़े देश - विदेश के 70 प्रमुख विशेषज्ञों, इंजिनियर्स, योजनाकारों, विश्व बैंक, नाबार्ड, अनुसंधान संस्थाओं एवं स्वंयसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।
कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजेश्वर सिंह ने कहा कि प्रत्येक जीव के सम्पूर्ण जीवन निर्वाह के लिए जल आधारभूत प्राकृतिक संसाधन है। जल के बिना भूमण्डल पर जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि राज्य की अधिकांश पंचायत समितियों एवं खंडों में भूजल का अत्यधिक दोहन होने से आने वाला समय कठिनाई भरा होगा। लिहाजा सभी सम्बद्ध पक्षों को जल संरक्षण के लिए दीर्घकालिक रणनीति से कार्य करना होगा।
श्री सिंह ने कहा कि पूर्व में मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत 12 हजार गांवों में जल संरक्षण का कार्य हुआ। अब राज्य सरकार ने राजीव गांधी जल संचय योजना के तहत आमजन की व्यापक भागीदारी एवं श्रमदान से चार हजार गांवों में जल संरक्षण का कार्य करवाने का निर्णय लिया है। उन्होंने जल संग्रहित वर्षा जल से बढ़े भूजल की सतत्ता बनाए रखने के लिए एवं जल उपयोग प्रबन्धन के लिये ग्रामीणों को जोड़ने पर जोर दिया।
कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए एमएनआईटी के निदेशक उदय कुमार यारागट्टी ने कहा कि शैक्षणिक संस्थाओं, अनुसंधान केन्द्रों, विश्वविद्यालयों के अनुसंधान को आम कृषक तक पहुंचाने के लिए सरकार के साथ समन्वय करके कार्य करना होगा। विन्सटन सिडनी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बसन्त माहेश्वरी ने कहा कि आस्ट्रेलियन सेन्टर फॉर इन्टरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च से पोषित ‘मारवी प्रोजेक्ट’ के तहत राजस्थान के पांच एवं गुजरात के छह गांवों में जन भागीदारी से भूजल के प्रबन्धन के लिए ग्रामीणों को प्रशिक्षित करके अपने भूजल संसाधनों का आकलन करने की विधि में पारंगत किया गया जिन्हें अब भूजल जानकार कहा जाता है। वे सम्पूर्ण गांव को इसमें प्रशिक्षित कर रहे हैं। अपने कुओं में जल स्तर को नापना तथा उसके अनुसार फसल पद्धति का चयन करना आदि कार्य कर रहे हैं। इन प्रयासों केे सकारात्मक परिणाम सामने आये हैं।
जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग के आयुक्त सीताराम बन्जारा ने विभाग के समस्त जिला अधिकारियों को आगामी दिनों में जिला स्तर पर अधिक से अधिक प्रशिक्षण आयोजित करके कृषकों तक भूजल प्रबन्धन की तकनीकों से अवगत करवाने पर बल दिया।
वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय, आस्ट्रेलिया से जैण्डर विशेषज्ञ मैडम ब्रेन्डा डोबिया ने भूजल प्रबन्धन में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित्त करने की आवश्यकता बताई।
सुनील
वार्ता
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